इजराइल के शहर हाइफा ने सोमवार को शहीद भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है. हाइफा के मेयर योना याहाव ने आगे कहा कि शहर के स्कूलों की इतिहास की पुस्तकों में यह सुधार किया जा रहा है कि शहर को ओटोमन शासन से मुक्त कराने वाले ब्रिटिश नहीं बल्कि भारतीय सैनिक थे. मेयर योना याहाव ने आगे कहा- “मैं इसी शहर में पैदा हुआ और यहीं से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. हमें लगातार यही बताया जाता था कि इस शहर को अंग्रेजों ने आजाद कराया था, जब तक कि एक दिन हिस्टोरिकल सोसायटी के किसी व्यक्ति ने मेरे दरवाजे पर दस्तक नहीं दी और कहा कि उन्होंने काफी रिसर्च किया और पाया कि अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि भारतीयों ने इस शहर को (ओटोमन साम्राज्य से) आजाद कराया था.

क्या है पूरी कहानी ?

बात प्रथम विश्व युद्ध की है. उत्तरी इसराइल के तटीय शहर हाइफा पर ऑटोमन साम्राज्य, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी की संयुक्त सेना का कब्‍जा था. इनके कब्‍जे से शहर को आजाद कराने के लिए भारतीय सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई. ब्रिटिश हुकूमत की ओर से लड़ते हुए 44 भारतीय सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया. इतिहास में इस युद्ध को कैवलरी यानी घुड़सवार सेना की आखिरी बड़ी लड़ाई के मिसाल के तौर पर देखा जाता है. क्‍योंकि भारतीय सैनिकों ने सिर्फ भाले, तलवारों और घोड़ों के सहारे ही जर्मनी-तुर्की की मशीनगन से लैस सेना को धूल चटा दी थी.

हाइफा दिवस के दिन करते याद

हाइफा शहर को 23 सितंबर को भारतीय सेना ने आजाद कराया था, इसलिए इसरायल हर साल भारतीय सैनिकों की याद में 23 सितंबर को हाइफ़ा दिवस मनाता है. तीन वीर भारतीय कैवलरी रेजिमेंट मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर को श्रद्धांजलि दी जाती है. इसलिए इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से लिखे हुए है. इसमें भारतीय सैनिकों के बलिदान और उनकी बहादुरी के किस्सों को स्कूल में बताया जाता है. ये युद्ध ऐसा था जिसमें भारतीय सैनिकों ने ऐसी सेना से लोहा लिया था जिनके पास गोला बारूद और मशीन गन थे.

हर साल मनाया जाता है हाइफा दिवस

मेयर याहाव ने 2009 में इसी स्थान पर आयोजित पहले समारोह के दौरान कहा था कि उत्तरी तटीय शहर की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में भारतीय सैनिकों द्वारा इसकी मुक्ति की कहानी शामिल की जाएगी और आज यह शहर के युवाओं के बीच एक प्रसिद्ध तथ्य है. भारतीय सेना हर साल 23 सितंबर को हाइफा दिवस के रूप में मनाती है, ताकि तीन बहादुर भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों – मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर्स – को श्रद्धांजलि दी जा सके, जिन्होंने 1918 में इसी दिन 15वीं इंपीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड की एक आक्रामक घुड़सवार कार्रवाई के बाद हाइफा को आजाद कराने में मदद की थी. भारतीय मिशन और हाइफा नगर पालिका द्वारा यहां भारतीय सैनिकों के कब्रिस्तान में हर साल बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.

74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद

इस कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान इजरायल में भारत के राजदूत जे.पी. सिंह ने कहा- भारतीय सैनिकों ने इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में ओटोमन सेना की हार हुई. सिंह ने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 74,000 से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपनी जान कुर्बान की, जिनमें से 4,000 से ज्यादा पश्चिम एशिया में शहीद हुए. भारतीय राजदूत ने कहा- यह उस युग की अंतिम शास्त्रीय घुड़सवार कार्रवाई थी, जिसमें युद्ध का बड़े पैमाने पर मशीनीकरण हुआ था. उन्होंने कहा- ये शहीद सैनिक हमारे देश के सभी प्रमुख धर्मों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे और यह श्रद्धांजलि दर्शाती है कि उनके साहस और बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा.

इजराइल के इन शहरों के कब्रिस्तानों में भारतीय सैनिक दफन

इजराइल में हाइफा, यरूशलेम और रामले में भारतीय सैनिकों के स्मारक मौजूद हैं, जिनमें कुछ भारतीय सैनिक भी शामिल हैं जो यहूदी वंश के थे. इजराइल के इन शहरों के कब्रिस्तानों में लगभग 900 भारतीय सैनिक दफन हैं. इन सैनिकों की बहादुरी को श्रद्धांजलि देने के लिए, भारतीय दूतावास, इजरायली अधिकारियों की मदद से, पवित्र भूमि में “द इंडिया ट्रेल” स्थापित कर रहा है.

हाइफा में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में कक्षा 3 से 5 तक भारतीय सैनिकों द्वारा हाइफा की मुक्ति की कहानी पढ़ाई जाती है. हाइफा हिस्टोरिकल सोसायटी भी पिछले एक दशक से शहर के स्कूलों में जाकर युवाओं को यह कहानी सुना रही है.

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