संजीव शर्मा, कोंडागांव। दशहरे पर जहां पूरे देश में रावण दहन की परंपरा है, वहीं छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के भूमका और हिर्री गांव अपनी अलग ही पहचान रखते हैं। यहां रावण को नहीं जलाया जाता, बल्कि मिट्टी का विशाल रावण बनाकर उसका वध किया जाता है। यहां मिट्टी के रावण की नाभि से अमृत निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
मिट्टी का रावण और नाभि से निकलता है अमृत
गांव के लोग मिट्टी का रावण बनाते हैं। रामलीला के मंचन के बाद रावण का वध करने की प्रक्रिया होती है। खास बात यह है कि रावण की नाभि से एक कृत्रिम “रक्त” या “अमृत” निकाला जाता है। ग्रामीण इसे अपने माथे पर तिलक लगाकर स्वयं को पवित्र मानते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, यह तिलक शुभ फल देने वाला और समृद्धि का प्रतीक है।


पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही मान्यता
यह परंपरा दादा-परदादा के जमाने से चली आ रही है। ग्रामीण मानते हैं कि मिट्टी के रावण की नाभि से निकले रक्त का तिलक लगाना उनके जीवन में सुख-शांति और शक्ति प्रदान करता है। यही कारण है कि दशहरे पर यह परंपरा आज भी पूरे उत्साह और आस्था के साथ निभाई जाती है। इस अनूठी परंपरा का रावण से कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है, बल्कि यह स्थानीय मान्यताओं और आस्थाओं पर आधारित है। इसे न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और पहचान का भी प्रतीक है।
दूर-दराज से आते हैं लोग
जैसे-जैसे इस अनोखी परंपरा की चर्चा फैल रही है, वैसे-वैसे आसपास के गांवों और जिलों से लोग भूमका और हिर्री आकर इस अनोखे रावण वध को देखने पहुंचते हैं। कोंडागांव के भूमका और हिर्री गांव का दशहरा जलते हुए रावण से नहीं, बल्कि मिट्टी से बने रावण की नाभि से अमृत निकालकर तिलक लगाने की परंपरा से खास बन जाता है। यह आस्था और संस्कृति का संगम है, जो गांव की परंपराओं को आज भी जीवित रखे हुए हैं।
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