दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) में 15 साल के नाबालिग लड़के ने अपनी कस्टडी को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया। बच्चे ने कोर्ट को बताया कि वह अब अपने पिता या मां के साथ नहीं रहना चाहता, बल्कि अपने मामा के साथ रहना चाहता है। इस अर्जी को सुनकर अदालत में मौजूद लोग हैरान रह गए। मामले की सुनवाई अभी चल रही है और अदालत ने इस अर्जी को गंभीरता से लेते हुए आगे की कार्रवाई की योजना बनाई है।
नाबालिग ने अदालत में कहा कि उसके माता-पिता दोनों नई जिंदगी में आगे बढ़ चुके हैं और दोनों ने दूसरी शादी कर ली है। उनके अपने-अपने परिवार हैं, इसलिए उसके लिए उनके साथ रहना न केवल असुविधाजनक होगा बल्कि सहज भी नहीं है। इसके बजाय, उसने कोर्ट को बताया कि वह अपने मामा के घर में सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी रहा है। अदालत ने बच्चे की इच्छा को गंभीरता से लिया और आगे की सुनवाई के लिए मामला सूचीबद्ध किया गया।
पिता ने मांगा समय, कोर्ट ने दिया आश्वासन
बच्चे के पिता की ओर से पेश वकील ने अदालत से गुजारिश की कि उन्हें मामले पर सोचने के लिए समय दिया जाए। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगली सुनवाई तक कस्टडी के आदेश को लागू करने पर वे जोर नहीं देंगे। अदालत ने इस शर्त को मान लिया और फिलहाल बच्चे को उसकी मौजूदा स्थिति में रहने दिया गया। कोर्ट ने अगली सुनवाई 12 नवंबर के लिए निर्धारित की है और उस दिन बच्चे के दोनों माता-पिता को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश भी दिया है।
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दिल्ली हाई कोर्ट में 15 साल के नाबालिग द्वारा मां-बाप से अलग रहने की अर्जी का मामला नया नहीं है। इसकी जड़ें 2018 में कड़कड़डूमा स्थित फैमिली कोर्ट के एक आदेश से जुड़ी हैं। फैमिली कोर्ट ने 16 मई 2018 को बच्चे की कस्टडी उसके जैविक पिता को सौंप दी थी। वर्तमान हाई कोर्ट में दायर अर्जी उसी फैसले के खिलाफ चुनौती के रूप में पेश की गई है। अदालत ने बच्चे की भावनात्मक भलाई और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुनवाई की प्रक्रिया जारी रखी है और अगली सुनवाई 12 नवंबर को तय की गई है, जिसमें दोनों माता-पिता को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया गया है।
मां-बाप का रिश्ता टूटा, बच्चा बीच में फंसा
केस के दस्तावेजों के अनुसार, बच्चे के माता-पिता की शादी 16 मई 2008 को हुई थी। तीन साल बाद, जून 2011 में इस बच्चे का जन्म हुआ। लेकिन कुछ ही समय बाद पति-पत्नी के बीच मतभेद गहराने लगे और अंततः बच्चे की मां अपने मायके लौट गई। इस दौरान दोनों परिवारों के बीच एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार, यदि मां ने दूसरी शादी की तो बच्चे की कस्टडी अपने आप पिता को मिल जाएगी। इसी समझौते के आधार पर 2018 में फैमिली कोर्ट ने पिता को कस्टडी सौंपने का आदेश दिया था।
पिता ने कस्टडी के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
केस के दस्तावेजों के अनुसार, 2016 में बच्चे के पिता ने गार्जियन्स एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत अदालत में याचिका दायर की थी। उनका तर्क था कि मां ने दूसरी शादी कर ली है, इसलिए बच्चे की कस्टडी उन्हें दी जानी चाहिए। फैमिली कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बच्चे की कस्टडी पिता को सौंप दी थी।
लेकिन अब, कई साल बाद बच्चा खुद अदालत पहुंचा है और उसने साफ कहा कि उसके लिए असली परिवार वही है जहां वह इस वक्त रह रहा है—अपने मामा और उनके परिवार के साथ। बच्चे ने अदालत को बताया कि यही उसकी खुशी और स्थिरता का आधार है।
अदालत अब इसी पर विचार करेगी और अगली सुनवाई में बच्चे के दोनों माता-पिता को भी अपनी राय रखने का मौका मिलेगा। हाई कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को तय की गई है, और उस दिन सबकी निगाहें अदालत पर टिकी होंगी।
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