दिल्ली विश्वविद्यालय(Delhi University) के रामानुजन कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर रसाल सिंह के निलंबन पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने बड़ा फैसला सुनाया है। तीन महिला शिक्षकों द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने के बाद प्रोफेसर सिंह का निलंबन किया गया था। हालांकि, कोर्ट ने प्रोफेसर सिंह के निलंबन को अगली सुनवाई तक स्थगित कर दिया है। अदालत ने इस मामले में निष्पक्षता और प्रक्रियात्मक खामियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं और कहा कि सभी पक्षों को सुनने का अधिकार सुनिश्चित होना चाहिए।

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आरोपों का साये में निलंबन, कोर्ट ने जताई आपत्ति

जस्टिस सचिन दत्ता ने रामानुजन कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर रसाल सिंह के निलंबन मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि उन्हें निलंबन से पहले अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी माना कि यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोपों की जांच का जिम्मा आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का है, लेकिन निलंबन का आदेश उप-रजिस्ट्रार द्वारा गठित एक समिति की सिफारिश पर जारी किया गया, जो उचित नहीं माना जा सकता।

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जस्टिस दत्ता ने कहा, “प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि आरोपों की जांच से पहले ही प्रोफेसर सिंह का निलंबन अनुचित है और यह आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के अधिकार क्षेत्र को कमजोर करता है।” कोर्ट ने 23 सितंबर को जारी निलंबन आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक इसे स्थगित कर दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि निलंबन के आदेश से पहले प्रोफेसर को सुनने का अवसर देना आवश्यक था, ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हो सके।

ICC को सौंपी गई जिम्मेदारी

दिल्ली हाई कोर्ट ने रामानुजन कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर रसाल सिंह के निलंबन मामले में स्पष्ट किया कि इस मामले में कोई अंतरिम कदम—जैसे निलंबन या अन्य प्रतिबंध—केवल आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ही तय कर सकती है। जस्टिस सचिन दत्ता ने ICC को निर्देश दिया कि वह मामले की त्वरित और निष्पक्ष जांच करे और जल्द से जल्द निर्णय ले। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि यदि आवश्यक हो, तो शिकायतकर्ताओं के हित में उचित सुरक्षात्मक आदेश पारित किए जाएं।

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प्रक्रियात्मक खामियां उजागर

कोर्ट ने रामानुजन कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर रसाल सिंह के निलंबन मामले में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के उप-रजिस्ट्रार द्वारा गठित समिति का गठन ही अनुचित था। अदालत ने जोर देकर कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में केवल आंतरिक शिकायत समिति (ICC) को ही जांच का अधिकार है। कोर्ट ने नोट किया कि उप-रजिस्ट्रार की समिति ने अपनी जून 2023 की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से प्रोफेसर सिंह के निलंबन की सिफारिश नहीं की थी। इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने बिना सुनवाई के निलंबन का आदेश जारी कर दिया, जो प्रक्रियात्मक रूप से गलत और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ था।

प्रोफेसर सिंह का पक्ष

लूथरा ने दावा किया कि प्रोफेसर सिंह के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप कुछ निहित स्वार्थों और व्यक्तिगत दुर्भावना का नतीजा हैं। उन्होंने कहा कि शिकायतें बदनीयती से प्रेरित हैं और इसे एक साजिश के रूप में देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह दलील सुनी और मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए ICC को निर्देशित किया, जबकि 23 सितंबर के निलंबन आदेश पर अंतरिम रोक जारी की गई। अदालत ने सभी पक्षों के अधिकारों और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अगली सुनवाई तक प्रोफेसर सिंह को मौजूदा स्थिति में रहने की अनुमति दी।

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अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को

दिल्ली हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 15 अक्टूबर तय की है। अदालत ने सभी पक्षों से जवाब मांगा है और मामले की पूरी सुनवाई के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा। प्रोफेसर सिंह के निलंबन को चुनौती देने वाली याचिका पर कोर्ट ने 26 सितंबर को अपना आदेश सुरक्षित रखा था। अदालत ने ICC को निर्देश दिए हैं कि वह मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच करे। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि आंतरिक शिकायत समिति (ICC) इस मामले में क्या रुख अपनाती है और क्या यह विवाद जल्द सुलझ पाएगा। कोर्ट ने इस प्रक्रिया में सभी पक्षों के अधिकारों और सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दिया है।

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