रायपुर। शहरी और ग्रामीण इलाकों में लोगों को उनके मोहल्लों, बाजारों और चौक- चौराहों पर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए शुरू की गईं मोबाइल मेडिकल यूनिटें (एमएमयू) अब खुद अव्यवस्था की शिकार हो गई हैं. जिन बसों से स्वास्थ्य सेवाएं सीधे लोगों तक पहुंचनी थीं, उनमें डाक्टरों के साथ-साथ दवाओं की भी कमी देखने को मिल रही है.

यह भी पढ़ें : बालको प्लांट में बड़ा हादसा, अचानक गिरा 20 साल पुराना इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर संयंत्र, मचा हड़कंप

महिलाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए 19 नवंबर 2020 को ‘दाई – दीदी मोबाइल क्लीनिक’ की शुरुआत हुई. वहीं शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए नवंबर 2020 में ‘मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना’ के तहत मोबाइल मेडिकल यूनिटें शुरू की गईं थी. उद्देश्य था कि लोग बिना अस्पताल जाए, अपने ही इलाके में ओपीडी, जांच और दवा जैसी बुनियादी सुविधाएं पा सकें.

वर्ष 2025 में अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोगों का ओपीडी मोबाइल मेडिकल यूनिटों के माध्यम से किया गया है. 30 हजार से अधिक लोगों के खून समेत अन्य परीक्षण किए गए हैं. इसके अलावा 1.3 लाख से अधिक मरीजों को मुफ्त दवा वितरित की गई है. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि एमएमयू का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, और इनकी जरूरत भी बनी हुई है.

निर्धारित सेटअप बनाम हकीकत

हर मोबाइल मेडिकल यूनिट में पांच सदस्यीय टीम होना अनिवार्य है. इनमें एक डाक्टर, एक नर्स, एक फार्मासिस्ट, एक लैब टेक्नीशियन और एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी . लेकिन वर्तमान में कई मोबाइल मेडिकल यूनिटों में डाक्टर नहीं हैं. ऐसी स्थिति में नर्सों और अन्य स्टाफ ही ओपीडी और दवा वितरण का काम संभाल रहे हैं.

मोहल्लो-बाजारों में पहुंचती थी वेन

मोबाइल मेडिकल यूनिटें खासकर उन लोगों के लिए राहत का साधन हैं, जिन्हें सरकारी अस्पताल तक पहुंचने में दिक्कत होती है. मोहल्लों, बस्तियों और बाजारों के नजदीक लगने वाले इन शिविरों से रोजाना हजारों लोग दवा और जांच की सुविधा पा रहे हैं, लेकिन डाक्टर न होने की स्थिति में उन्हें केवल दवा वितरण और प्राथमिक जांच तक ही सीमित सेवाएं मिल रही हैं.