गोविंद पटेल, कुशीनगर. जनपद में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान इस बार भी सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गईं. साफ निर्देशों और रोक के बावजूद प्रतिमाओं का विसर्जन नदियों और तालाबों में ही किया गया. प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के कारण जनपद में कहीं भी विसर्जन कुंड नहीं बनाए गए थे, जिससे लोग बेखौफ होकर नदियों, तालाबों और जल स्रोतों में प्रतिमाएं और पूजन सामग्री विसर्जित करते रहे.
इसे भी पढ़ें- मैं नहीं देखूंगी, ये मुसलमान है… डॉक्टर ने धर्म का हवाला देकर इलाज करने से किया इंकार, मामला जानकर रह जाएंगे हैरान
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि मूर्तियों के रंग, केमिकल और प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) जलस्रोतों में मिलकर जल प्रदूषण को बढ़ाते हैं. वहीं NGT ने 2017 और 2019 में आदेश जारी कर मूर्ति विसर्जन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था और विसर्जन कुंड बनाना अनिवार्य किया था, लेकिन कुशीनगर में प्रशासन ने इन आदेशों पर अमल करना जरूरी नहीं समझा. परिणामस्वरूप बड़ी गंडक, छोटी गंडक जैसी जीवनदायिनी नदियां और तालाब भारी मात्रा में प्रदूषण की चपेट में आ गए. अनुमान है कि जनपद भर में करीब 10 हजार से अधिक मूर्तियों का विसर्जन नदियों और तालाबों में हुआ. इसके साथ ही कपड़े, फूल-मालाएं, प्लास्टिक और पूजा की अन्य सामग्रियां भी जलस्रोतों में डाली गईं. इससे जलजनित बीमारियों का खतरा और जलीय जीव-जंतुओं पर संकट बढ़ना तय है.
इसे भी पढ़ें- इतनी लाठियां बरसेंगी कि सात पुश्तें… बरेली बवाल पर राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण की कड़ी चेतावनी, जानिए ऐसा क्या कहा?
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन को पहले से विसर्जन कुंड बनाने चाहिए थे, ताकि धार्मिक आस्था के साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहता. लेकिन अधिकारियों की उदासीनता से न सिर्फ अदालत के आदेशों की अनदेखी हुई, बल्कि आने वाले समय में जलसंकट और प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो सकती है. जनपद के पर्यावरण प्रेमियों और समाजसेवियों ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर समय रहते शासन-प्रशासन ने ठोस कदम नहीं उठाए तो नदियों और तालाबों को बचाना मुश्किल हो जाएगा.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें
- English में पढ़ने यहां क्लिक करें