चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई की ‘भारत कानून के शासन से चलता है, बुलडोजर से नहीं’ वाली टिप्पणी पर भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने प्रतिक्रिया दी है। खंडेलवाल ने कहा, “बुलडोजर एक ऐसी भाषा है, जिसे टेढ़ा आदमी भी समझता है।” उन्होंने आगे कहा कि कानून में कई राज्य सरकारों को जरूरत पड़ने पर बुलडोजर का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है। सांसद के इस बयान से न्याय और कानून के तरीकों पर चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है।
भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि भारत निश्चित रूप से कानून के शासन से चलता है और कानून का पालन करना सभी के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा, “भारत का अपना संविधान है और देश संविधान से चलता है, इसमें कोई दो राय नहीं है।” खंडेलवाल ने आगे बताया कि कानून में कई राज्य सरकारों को बुलडोजर चलाने के अधिकार भी दिए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि “जब परिस्थितियां हाथ से बाहर निकल जाएं, तो बुलडोजर एक ऐसी भाषा है, जिसे अच्छे से अच्छा टेढ़ा आदमी भी समझता है।”
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मॉरीशस की 3 दिवसीय यात्रा पर हैं जस्टिस गवई
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई ने शुक्रवार को कहा कि भारत की न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है। उन्होंने यह बात मॉरीशस में ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर आयोजित सर मौरिस रॉल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 के उद्घाटन के दौरान कही। सीजेआई गवई ने ‘बुलडोजर न्याय’ की निंदा करते हुए अपने ही फैसले का उल्लेख किया। जानकारी के अनुसार, सर मौरिस रॉल्ट 1978 से 1982 तक मॉरीशस के प्रधान न्यायाधीश रहे हैं। जस्टिस गवई वर्तमान में मॉरीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं।
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कानून के शासन के सिद्धांत और भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी व्याख्या पर प्रकाश डालते हुए CJI बी.आर. गवई ने कहा, “इस फैसले ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है।” ‘बुलडोजर न्याय’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि कथित अपराधों को लेकर अभियुक्तों के घरों को गिराना कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करता है, कानून के शासन का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जस्टिस गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि कार्यपालिका इस मामले में अन्य भूमिका नहीं निभा सकती.
मॉरीशस में आयोजित सर मौरिस रॉल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई ने कानून के शासन पर अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर मॉरीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और प्रधान न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल भी उपस्थित थे।
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अपने संबोधन में जस्टिस गवई ने 1973 के केशवानंद भारती मामला सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक क्षेत्र में ऐतिहासिक अन्याय के निवारण के लिए बनाए गए कानूनों और हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों के लिए कानून का सहारा लिया जाता है। जस्टिस गवई ने आगे कहा, ‘‘राजनीतिक क्षेत्र में, कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है, जो कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है…।’’
मॉरीशस में दिए गए व्याख्यान में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई ने महात्मा गांधी और बी.आर. आंबेडकर के योगदान का उल्लेख किया। जस्टिस गवई ने कहा कि उनकी दूरदर्शिता ने दर्शाया कि भारत में “कानून का शासन केवल नियमों का समूह नहीं है।”
उन्होंने हाल के उल्लेखनीय फैसलों का भी उल्लेख किया, जिनमें मुसलमानों में तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने वाला फैसला शामिल है। इसके अलावा, जस्टिस गवई ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने वाले फैसले के महत्व पर जोर दिया।
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