दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि जमानत मिलने के बाद सोशल मीडिया(Social Media) पर उत्सव मनाना अपने आप में जमानत रद्द करने का कारण नहीं होगा। न्यायालय ने कहा कि जब तक सोशल मीडिया पोस्ट या वीडियो में शिकायतकर्ता के खिलाफ स्पष्ट धमकी या डराने-धमकाने की मंशा न दिखे, तब तक ऐसी गतिविधियां जमानत रद्द करने का आधार नहीं बन सकतीं।

जमानत का जश्न, लेकिन धमकी नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट के जज रविंदर दुदेजा ने एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर उत्सव मनाने को जमानत रद्द करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। यह याचिका जफीर आलम द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने नरेला इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस स्टेशन में दर्ज मामले में आरोपी मनीष की जमानत रद्द करने की मांग की थी। मनीष पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराओं के तहत मामला दर्ज है:

धारा 436: आगजनी

धारा 457: रात में चोरी की तैयारी या घुसपैठ

धारा 380: चोरी

धारा 34: साझेदारी में अपराध

शिकायतकर्ता का आरोप था कि मनीष और उसके साथियों ने जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया। उनके दावे के अनुसार मनीष ने सोशल मीडिया पर अप्रत्यक्ष धमकियां दीं। उसने हथियार लहराए और मोहल्ले में डर का माहौल बनाया। 12 जून 2025 को एक सह-आरोपी को शिकायतकर्ता के घर के बाहर देखा गया। हालांकि, कोर्ट ने इन दावों को ठोस सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जमानत मिलने की खुशी में वीडियो या सोशल मीडिया स्टेटस डालना अपने आप में कोई अपराध नहीं है। जज ने कहा: “कुछ स्क्रीनशॉट्स पेश किए गए हैं, लेकिन उनसे यह साबित नहीं होता कि ये पोस्ट शिकायतकर्ता को डराने के इरादे से डाले गए थे।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत रद्द करने के लिए बेहद ठोस और पुख्ता परिस्थितियां होना जरूरी है, जैसे कि न्याय प्रक्रिया में दखल, जमानत का दुरुपयोग ।

शिकायतकर्ता ने जमानत मिलने के बाद धमकियों की कोई औपचारिक पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की थी। इस कारण उनके आरोप बिना ठोस सबूत के हवा-हवाई साबित हुए। कोर्ट ने माना कि जमानत रद्द करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है और याचिका को हाल ही में खारिज कर दिया गया।

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