दिल्ली में हाल ही हुई बारिश के बाद डेंगू और मलेरिया के मामले तेजी से बढ़ गए हैं। बारिश के कारण कई जगह पानी जमा हो गया है, जिससे मच्छरों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप सरकारी और निजी अस्पतालों में बुखार और प्लेटलेट्स की कमी वाले मरीज लगातार भर्ती हो रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अब डेंगू मरीजों के लिवर को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे उनकी स्थिति और गंभीर हो रही है। विशेषज्ञ लोगों को सतर्क रहने और मच्छरों से बचाव के उपाय अपनाने की चेतावनी दे रहे हैं।
नगर निगम के आंकड़ों से पता चलता है कि मलेरिया संक्रमण पिछले छह वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है, जबकि डेंगू और चिकनगुनिया भी शहर के सार्वजनिक स्वास्थ्य बोझ को लगातार बढ़ा रहे हैं। लोगों से अपील की जा रही है कि वे अपने घर और आस-पास जमा पानी को तुरंत साफ करें और मच्छरदानी या रिपेलेंट का उपयोग करें।
डॉक्टरों के मुताबिक, हाल ही के मौसम में नमी और पानी जमा होने के कारण मच्छरों का प्रजनन तेज हो गया है, जिससे डेंगू और मलेरिया संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। इमरजेंसी विभाग में ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें डेंगू के बुखार ने मरीज के लिवर को प्रभावित कर दिया है, जिससे उनकी स्थिति गंभीर हो रही है। ईस्ट दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के डॉ. कुलदीप कुमार ने बताया कि पिछले हफ्ते तक डेंगू के मामले बहुत कम आते थे, केवल 2-3 केस। लेकिन इस सप्ताह डेंगू के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है और इमरजेंसी में हर रोज लगभग 3 से 4 नए मामले आ रहे हैं।
मरीजों के लीवर पर पड़ रहा असर
ओपीडी में भी मरीजों की संख्या बढ़ गई है। ईस्ट दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के डॉ. कुलदीप कुमार ने बताया कि डेंगू के मरीजों के साथ उनके लिवर पर भी असर पड़ रहा है, जिससे उनकी स्थिति गंभीर हो रही है। इसके अलावा, मलेरिया के मामलों में भी वृद्धि देखने को मिली है, और गंभीर अवस्था में मलेरिया से ग्रसित मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं।
राम मनोहर लोहिया अस्पताल (RML) के डॉ. सुभाष गिरि ने बताया कि इमरजेंसी में डेंगू के मरीज बढ़ गए हैं। डॉ. गिरि ने कहा कि डेंगू के बुखार के 5 से 7 दिन के भीतर मरीजों का लिवर प्रभावित हो रहा है, जिससे उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है। उन्होंने सलाह दी कि ऐसे मरीज ज्यादा से ज्यादा लिक्विड लें और लगातार चिकित्सकीय देखरेख में रहें।
दिल्ली में हाल ही हुई बारिश के बाद डेंगू का खतरा तेजी से बढ़ गया है। डेंगू से लिवर प्रभावित होने पर मरीजों को भूख बिल्कुल नहीं लगती, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है और हालत गंभीर हो सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि इस समय लोग अपनी सेहत का विशेष ख्याल रखें, साफ-सफाई बनाए रखें, जमा पानी को तुरंत नष्ट करें और मच्छरों से बचाव के सभी जरूरी उपाय अपनाएं।
दिल्ली नगर निगम (MCD) की 29 सितंबर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अब तक दिल्ली में 371 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं, जो 2019 के बाद इसी अवधि में सबसे अधिक हैं। पिछले साल इसी समय तक शहर में 363 मलेरिया के मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2023 में 237, 2022 में 68 और 2021 में 66 मामले सामने आए थे। डेंगू के मामलों की संख्या इस साल 759 है, जो पिछले साल के 1,229 से कम है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि हर हफ्ते दर्जनों नए संक्रमण सामने आ रहे हैं। चिकनगुनिया के मामले इस साल 61 हैं, जबकि पिछले साल 43 थे। सौभाग्य से, इस साल अब तक मच्छर जनित बीमारियों से किसी की मौत नहीं हुई है।
स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि दिल्ली में मच्छर जनित बीमारियों के वास्तविक मामलों की संख्या रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों से कहीं अधिक हो सकती है। इसका कारण यह है कि कई मामले लापता (untraced) या अधूरे (incomplete) हैं, जिन्हें कुल गिनती में शामिल नहीं किया जाता। MCD की रिपोर्ट के अनुसार पुष्टि किए गए (confirmed) मामलों के अलावा 95 मलेरिया और 223 डेंगू संक्रमण उन मरीजों में पाए गए जिन्होंने हाल ही में दिल्ली के बाहर यात्रा की थी। 104 मलेरिया और 626 डेंगू मामलों में पते (address) अधूरे थे। पते का सत्यापन (verification) करने के बावजूद 76 मलेरिया और 195 डेंगू के मरीजों का पता नहीं चल सका।
एक वरिष्ठ सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि पता न चल सकने वाले मामले (untraced cases) मच्छर जनित बीमारियों के नियंत्रण में बड़ी समस्या बने हुए हैं। उनका कहना है कि मच्छर-विरोधी अभियान प्रजनन हॉटस्पॉट (breeding hotspots) की पहचान करने के लिए सटीक स्थान डेटा पर निर्भर करते हैं। अधिकारी ने कहा, “हमने अस्पतालों को बार-बार लिखा है कि वे मरीजों का पूरा विवरण देना सुनिश्चित करें।” इससे यह सुनिश्चित होता है कि अभियान सही स्थानों पर केंद्रित हो और संक्रमण फैलने से रोका जा सके। HT की 29 अगस्त की रिपोर्ट के मुताबिक, ये लापता मामले न सिर्फ आधिकारिक आंकड़ों को कम दिखाते हैं, बल्कि समूहों की सही पहचान न होने के कारण मच्छर-विरोधी अभियानों में भी रुकावट पैदा करते हैं।
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