रविंद्र कुमार भारद्वाज, रायबरेली. ऊंचाहार थाना क्षेत्र में 1 अक्टूबर 2025 की रात एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे उत्तर प्रदेश को झकझोर दिया. फतेहपुर जिले के तरावती का पुरवा गांव निवासी 38 वर्षीय दलित युवक हरिओम को चोर समझकर 24-25 ग्रामीणों की भीड़ ने बेल्ट और डंडों से पीट-पीटकर मार डाला. हरिओम, जो मानसिक रूप से कमजोर बताया जाता है, अपनी पत्नी से मिलने ऊंचाहार आया था, जो एनटीपीसी बैंक में सफाईकर्मी के तौर पर कार्यरत है. घटना ईश्वरदासपुर गांव के पास हुई, जहां भीड़ ने उसे घेर लिया और बेरहमी से पीटा. जिसके जवाब में भीड़ से किसी ने चिल्लाकर कहा, ” इसके बाद हत्यारों ने उसके शव को रेलवे ट्रैक के पास फेंक दिया, जहां वह 3 अक्टूबर को बरामद हुआ.
घटना के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया. रायबरेली के पुलिस अधीक्षक यशवीर सिंह ने बताया कि आरोपियों में विभिन्न जातियों के लोग शामिल हैं, और उन्होंने लोगों से जातिगत अफवाहें न फैलाने की अपील की. ऊंचाहार थाना प्रभारी समेत तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया, जबकि एक अन्य को हटाया गया. पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए हत्या का मुकदमा दर्ज किया और जांच शुरू की. हालांकि, इस घटना ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
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मायावती की चुप्पी: दलित समाज में नाराजगी
इन सबके बीच, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती की चुप्पी ने सभी को हैरान कर दिया है. खुद को दलितों की मसीहा बताने वाली मायावती ने न तो इस घटना पर कोई ट्वीट किया, न ही कोई आधिकारिक बयान जारी किया. अन्य दलित अत्याचार के मामलों में मायावती की सक्रियता देखी गई है, लेकिन इस बार उनकी खामोशी ने दलित समुदाय में असंतोष पैदा कर दिया है. सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं, “वोट बसपा को दो, लेकिन दलितों पर अत्याचार की लड़ाई सपा और कांग्रेस क्यों लड़े?” कई यूजर्स ने लिखा कि मायावती की चुप्पी उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है.
दलित अत्याचार का मुद्दा: आंकड़े और सियासत
सपा और कांग्रेस ने इस घटना को उत्तर प्रदेश में दलितों पर बढ़ते अत्याचार का प्रतीक बताया. सपा ने दावा किया कि यूपी में दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के हवाले से विपक्षी दलों ने कहा कि 2024 में यूपी में दलितों के खिलाफ अपराधों में 15% की वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि, सरकार ने इन आंकड़ों को संदर्भ से बाहर बताकर खारिज करने की कोशिश की. सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में भी बड़ा मुद्दा बन रही है. विपक्षी दल इसे 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी में हैं. कांग्रेस और सपा की सक्रियता जहां दलित समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश दिखती है, वहीं मायावती की खामोशी उनकी पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. दलित समाज में यह धारणा बन रही है कि बसपा केवल वोट की राजनीति तक सीमित है, जबकि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने में वह पीछे रह जाती है.
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