पटना। आज सुप्रीम कोर्ट में वोटर वेरिफिकेशन से जुड़ी विशेष प्रक्रिया SIR (Systematic Investigation of Roll) को लेकर एक अहम सुनवाई हो रही है। यह मामला सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस पर लिया गया फैसला पूरे देश में लागू होगा। पिछली सुनवाई 15 सितंबर को हुई थी, जिसमें चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे थे। पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा था कि चुनाव आयोग (EC) अपनी ही बनाई गई प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या हटाने से जुड़ी हर जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में लाना जरूरी है ताकि पारदर्शिता बनी रहे। वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट के सामने दलील दी कि केवल 30% आपत्तियों और दावों को ही अपडेट किया गया है, जबकि शेष को नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि नागरिकों को गैरकानूनी प्रक्रिया का खामियाजा क्यों भुगतना चाहिए?

गड़बड़ी मिली तो SIR की पूरी प्रक्रिया रद्द होगी

जस्टिस सूर्यकांत शर्मा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह बिहार SIR पर टुकड़ों में राय नहीं दे सकते। अगर जांच में SIR के दौरान चुनाव आयोग द्वारा कोई अवैधता पाई जाती है, तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत यह मानकर चल रही है कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारियों को जानता है। फिर भी अगर प्रक्रिया में कहीं गड़बड़ी होती है तो कोर्ट इसे अनदेखा नहीं करेगा।

आधार पर भी उठा सवाल

अश्विनी उपाध्याय जो याचिकाकर्ता के तौर पर पेश हुए, उन्होंने कहा कि आधार न तो नागरिकता का प्रमाण है और न ही यह अंतिम पहचान पत्र माना जा सकता है। यह केवल अन्य दस्तावेजों की तरह एक विकल्प है।
इस पर कोर्ट ने भी सहमति जताई कि आधार कार्ड केवल एक पहचान पत्र है, न कि नागरिकता का प्रमाण। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि आधार को केवल 12वें दस्तावेज के तौर पर इस्तेमाल किया जाए। आयोग पहले से ही 11 दस्तावेजों को पहचान के लिए मान्यता देता है।

सभी आपत्तियों की सुनवाई हो रही

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन कर रहा है और हर आपत्ति पर सुनवाई की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हर नाम जोड़ने या हटाने की जानकारी सार्वजनिक करने से लोगों की प्राइवेसी पर असर पड़ सकता है। वहीं वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि आयोग ने आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में मान्यता देने के लिए 10 सितंबर को एक बैठक भी की थी।

कोर्ट की निगरानी में प्रकाशित होगी मतदाता सूची

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची 1 अक्टूबर को प्रकाशित हो चुकी है, लेकिन यह प्रक्रिया अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर इस प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो उसे सुधारा जाएगा।
अब सभी की निगाहें आज की सुनवाई पर टिकी हैं, क्योंकि यह फैसला देशभर में SIR प्रक्रिया की वैधता और पारदर्शिता पर प्रभाव डाल सकता है।