पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा के साथ ही राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई है। अब मंत्री और सांसद सरकारी कामों से ज्यादा टिकट चाहने वालों के दबाव में दिख रहे हैं। भाजपा और जदयू में टिकट को लेकर मारामारी जैसी स्थिति बन गई है। चुनाव की घोषणा के बाद उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी मंगलवार को अपने कार्यालय नहीं गए। सुबह से लेकर देर शाम तक उनके सरकारी आवास पर टिकट मांगने वालों की भीड़ लगी रही। कई समर्थक अपने उम्मीदवारों के साथ पहुंचकर टिकट की दावेदारी पेश करते नजर आए। दूसरे उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा से भी सुबह-सुबह कई नेता मिले। इसके बाद वे एक चैनल के कार्यक्रम में शामिल हुए और फिर अपने विधानसभा क्षेत्र लखीसराय चले गए। कुछ टिकटार्थी तो उनके पीछे-पीछे वहां तक पहुंच गए।
दिलीप जायसवाल के आवास पर रमा देवी पहुंचीं
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल के आवास पर भी मंगलवार को जमकर भीड़ रही। करीब तीन सौ से अधिक नेता और कार्यकर्ता उनसे मिले। इन्हीं में भाजपा की पूर्व सांसद रमा देवी भी शामिल थीं जो अपने पुत्र देवाशीष के लिए टिकट मांगने पहुंचीं। रमा देवी अपने बेटे को सीतामढ़ी जिले के रीगा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनवाना चाहती हैं। फिलहाल इस सीट से भाजपा के विधायक मोतीलाल प्रसाद हैं जो राज्य सरकार में मंत्री भी हैं। बताया जा रहा है कि पिछले साल जब रमा देवी को सांसद रहते टिकट से वंचित किया गया था तब उन्हें विधानसभा चुनाव में अवसर देने का आश्वासन दिया गया था।
दिल्ली में लवली आनंद की सक्रियता
इधर दिल्ली में जदयू सांसद लवली आनंद भी अपने बेटे के लिए टिकट की दौड़ में जुट गई हैं। उन्होंने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात की। बताया जा रहा है कि वह अपने छोटे पुत्र अंशुमान आनंद के लिए एनडीए से टिकट चाहती हैं। लवली आनंद के बड़े पुत्र चेतन आनंद पहले राजद से विधायक चुने गए थे लेकिन अब जदयू में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में लवली आनंद चाहती हैं कि उनका परिवार एक ही गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरे।
दिल्ली में नेताओं की बैठकों का दौर
वहीं स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय भी इन दिनों दिल्ली में हैं। उन्होंने धर्मेंद्र प्रधान के साथ लोजपा (रा) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान से मुलाकात की। माना जा रहा है कि इन मुलाकातों का मकसद आगामी विधानसभा चुनाव में सीटों और उम्मीदवारों पर तालमेल बनाना है।बिहार की सियासत फिलहाल टिकट वितरण की राजनीति में उलझी हुई है। जहां वरिष्ठ नेता अपने परिवार के लिए टिकट चाहते हैं वहीं पुराने कार्यकर्ता अपनी वफादारी के दम पर मौका पाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। चुनावी माहौल हर दिन और दिलचस्प होता जा रहा है।
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