कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। आज वायु सेना दिवस है। इस मौके पर हम उस योद्धा की कहानी बताने जा रहे है, जिसने उड़ान भरी तो दुश्मन कांप उठा। ये कोई आम विमान नहीं, ये वो देसी योद्धा है जिसने न सिर्फ दुश्मन को हराया। बल्कि भारत के आत्मनिर्भर होने का पहला परचम भी लहराया। आज, इतिहास के पन्नों से निकलकर ये वीर ग्वालियर के चिड़ियाघर में शांति का प्रतीक बनकर खड़ा है।

1959 में भारत में पहली बार बना एक इंजन वाला लड़ाकू विमान ‘HAL नेट

दरअसल, साल 1959 में भारत में पहली बार एक इंजन वाला लड़ाकू विमान- ‘HAL नेट’ बना। छोटे आकार और हल्के वजन की वजह से यह दुश्मन की नज़रों से बचते हुए ज़मीन के करीब उड़ सकता था और अचानक हमला कर सकता था। 1965 की भारत-पाक जंग में, इस देसी विमान ने अमेरिकी ‘सेबर’ जेट्स से टक्कर ली और उन्हें आसमान से गिरा दिया। दुश्मन को यकीन ही नहीं हुआ कि भारत का छोटा सा ‘नेट’ इतना घातक साबित होगा।

शौर्य की वजह से मिला Sabre Destroyer का नाम

इसी शौर्य के चलते इसे नाम मिला ‘सेबर विध्वंसक’ यानी Sabre Destroyer।1971 के बांग्लादेश युद्ध में भी, नेट ने दुश्मन के तीन सेबर जेट्स गिराए,सिर्फ एक ही मिशन में दुश्मन का हौसला टूट गया और भारत ने जीत की तरफ तेज़ क़दम बढ़ाए।

1985 में भारतीय वायुसेना से हुआ रिटायर

1985 में भारतीय वायुसेना ने इस वीर विमान को सम्मान पूर्वक रिटायर कर दिया। लेकिन इसकी विरासत को भुलाया नहीं गया। आज ये सेबर विध्वंसक ग्वालियर के चिड़ियाघर में रखा गया है। नन्हें बच्चे, पर्यटक और देशप्रेमी इसे देखकर उस दौर को याद करते है,जब भारत का यह देसी विमान आसमान में तिरंगा लेकर उड़ता था।”

मेटल का टुकड़ा नहीं, गर्व की मिसाल

यह सिर्फ मेटल का एक टुकड़ा नहीं, यह गर्व की एक जीती-जागती मिसाल है। जो हमें याद दिलाता है कि भारत ने अपने दम पर कैसे इतिहास रचा। यह न केवल एक विमान है, बल्कि भारत की वीरता, आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी है।

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