अमित पांडेय, डोंगरगढ़। मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर में गुरुवार की देर शाम परंपरा और प्रशासन के बीच टकराव जैसी स्थिति बन गई. राजघराने से जुड़े राजकुमार भवानी बहादुर सिंह अपने साथ लगभग 50 से 60 आदिवासी श्रद्धालुओं के साथ मुख्य मंदिर से दूर स्थित एक स्थल पर पारंपरिक पूजा-पाठ कर रहे थे, जिसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी और प्रशासनिक हस्तक्षेप हुआ.

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सूत्रों के अनुसार, यह समूह रणचंडी मंदिर की सीढ़ियों के आसपास के हिस्से में पहुंचा था, जहाँ वे अपने कुल परंपरा अनुसार “गढ़ माता” की पूजा कर रहे थे. इसी दौरान मंदिर प्रबंधन को सूचना मिली कि “बकरे की बलि दी जा रही है” जिसके बाद प्रशासन सतर्क हो गया और तत्काल एसडीएम एम. भार्गव, एसडीओपी आशीष कुंजाम सहित पुलिस बल मौके पर पहुंचा,प्रशासनिक टीम ने स्थिति को शांत किया, जिसके बाद सभी श्रद्धालु रात करीब आठ बजे पैदल मार्ग से नीचे लौट गए.

राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने स्पष्ट कहा कि वे बलि देने नहीं गए थे, बल्कि कुल की पारंपरिक पूजा पद्धति के अनुसार “गढ़ माता” की आराधना कर रहे थे. उन्होंने कहा — “हमारे कुल में दो नवरात्र होते हैं. एक नवरात्र पूरा होता है, तो दूसरे में कोई बाधा या मृत्यु जैसी घटना घट जाती है. बैगा पद्धति से यह पूजा आवश्यक है ताकि गढ़ माता शांत रहें. हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की जानकारी है — हम बलि देने नहीं गए थे, बस अपनी परंपरा के अनुसार पूजा कर रहे थे.

राजकुमार ने कहा कि हमारे दादा राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने यह मंदिर ट्रस्ट को संचालन के लिए दिया था, मालिकाना हक के लिए नहीं. अगर हमारी पूजा पद्धति से ट्रस्ट या प्रशासन को दिक्कत है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रशासन यह तय करे कि क्या हमें अपनी संस्कृति छोड़ देनी चाहिए और किसी बाहरी के अनुसार पूजा करनी चाहिए?

राजकुमार ने यह भी कहा कि “डोंगरगढ़ का पहाड़ किसी की निजी संपत्ति नहीं है, यह जनआस्था का स्थल है. हम मां की पूजा करने गए थे, बलि देने नहीं. प्रशासन ने गलतफहमी में पूजा में बाधा डाली. डोंगरगढ़ एसडीएम एम भार्गव ने बताया कि सूचना मिलने पर टीम मौके पर पहुंची और स्थिति को शांति से संभाला गया. उन्होंने कहा, “मां बम्लेश्वरी मंदिर परिसर में किसी प्रकार की पशु बलि की अनुमति नहीं है. हमें बलि की कोशिश की सूचना मिली थी, लेकिन मौके पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. श्रद्धालु पारंपरिक पूजा कर रहे थे, उन्हें समझाकर शांतिपूर्वक नीचे भेजा गया.”

छत्तीसगढ़ का प्रमुख शक्तिपीठ

राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने मां बमलेश्वरी मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसके बाद से मंदिर का संचालन ट्रस्ट व्यवस्था के अंतर्गत होता आ रहा है. हाल के वर्षों में कई बार ट्रस्ट समिति, आदिवासी गोंड समाज और राजपरिवार की पारंपरिक पूजा प्रणाली को लेकर मतभेद उभरते रहे हैं. यह ताजा घटनाक्रम फिर एक बार इस सवाल को खड़ा करता है कि परंपरा और प्रशासनिक व्यवस्था के बीच रेखा कहां खींची जाए. राजकुमार भवानी बहादुर सिंह का कहना है कि “धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपरा को सम्मान के साथ समझने की ज़रूरत है.”