केरल हाईकोर्ट ने मुनम्बम जमीन विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह भूमि वक्फ संपत्ति नहीं है और वक्फ बोर्ड द्वारा किया गया स्वामित्व दावा पूरी तरह अवैध है. अदालत ने कहा कि इस भूमि को कभी “स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित” नहीं किया गया था और 1950 के जमीन हस्तांतरण दस्तावेजों में भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं है.यह फैसला राज्य सरकार के लिए बड़ी राहत लेकर आया है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए सिंगल बेंच के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुनम्बम ज्यूडिशियल कमीशन की नियुक्ति को अवैध ठहराया गया था. अब राज्य सरकार इस कमीशन की सिफारिशों को लागू कर सकती है.
कोर्ट ने वक्फ बोर्ड की 2019 की उस कार्रवाई को भी कठघरे में रखा जिसमें उसने मुनम्बम की भूमि को वक्फ घोषित किया था. अदालत ने इसे “एकतरफा और मनमाना निर्णय” बताते हुए कहा कि ऐसा कदम कानून के दायरे से बाहर है.
‘…तो फिर वक्फ संपत्ति का दावा किया जा सकता है’
डिवीजन बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर ऐसी मनमानी घोषणाओं को न्यायिक स्वीकृति मिल गई तो कल कोई भी इमारत – चाहे वह ताजमहल हो, लाल किला, विधानसभा भवन या स्वयं अदालत की इमारत – वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा सकता है.”
वक्फ बोर्ड को दावा करने में 69 साल क्यों लगे?
हाईकोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि वक्फ बोर्ड को यह दावा करने में 69 साल क्यों लगे. अदालत ने कहा कि यह कदम भूमि कब्जाने की रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है. फैसले में अदालत ने साफ किया कि फ़ारूक कॉलेज मैनेजमेंट को दी गई यह भूमि वक्फ संपत्ति नहीं है और इस मामले का निर्णय सिंगल बेंच के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता था. इस फैसले के साथ राज्य सरकार और मुनम्बम क्षेत्र के निवासियों को बड़ी राहत मिली है, वहीं वक्फ बोर्ड की कार्रवाई को न्यायालय ने स्पष्ट रूप से असंवैधानिक और अवैध करार दिया है.
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