कांकेर. कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम टेकाठोडा (कच्चे) के ग्रामीणों ने धर्मान्तरण के बढ़ते मामलों का विरोध करते हुए गांव में ईसाई धर्म प्रचारकों, जैसे पास्टर, पादरी और धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके साथ ही ग्रामीणों ने गांव के प्रवेश द्वार पर बड़ा बोर्ड लगाकर साफ संदेश दिया है कि अब किसी भी प्रकार के धर्मांतरण या धार्मिक आयोजन के उद्देश्य से गांव में प्रवेश वर्जित है.


टेकाठोडा (कच्चे) ऐसा करने वाला कांकेर जिले का बारहवां गांव बन गया है. जिसने मतांतरण के खिलाफ औपचारिक निर्णय लेकर बोर्ड लगाया है. ग्राम सभा का निर्णय संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए उठाया कदम
धर्म विशेष से नहीं है ग्रामीणों का विरोध
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में पिछले कुछ समय से आठ परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है. इससे गांव की सामाजिक संरचना और पारंपरिक जीवनशैली पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि उनका विरोध किसी धर्म विशेष से नहीं है, बल्कि वे प्रलोभन देकर कराए जा रहे मतांतरण के खिलाफ हैं.

गांव की ग्राम सभा ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि अब पास्टर, पादरी या धर्म परिवर्तन से जुड़े कोई भी व्यक्ति गांव में प्रवेश नहीं करेंगे. इसी निर्णय के तहत प्रवेश द्वार पर लगाए गए बोर्ड में स्पष्ट लिखा गया है कि पेशा अधिनियम 1996 लागू है, जिसके नियम चार (घ) के तहत सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण का अधिकार प्राप्त है.
ग्रामीणों का कहना है कि यह कदम संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासी क्षेत्रों को दी गई स्वशासन और सांस्कृतिक सुरक्षा की भावना के अनुरूप है. वह ईसाई धर्म या किसी भी अन्य धर्म का विरोध नहीं कर रहे हैं. लेकिन उनके गांव के सीधे-साधे लोगों को लालच, प्रलोभन या मदद के नाम पर धर्म बदलवाया जा रहा है, जो हमारी आदिवासी संस्कृति के लिए खतरा है.
ग्रामीणों का मानना है कि ऐसे कदमों से गांव का सामाजिक संतुलन बिगड़ रहा है और पुरखों की परंपराएं कमजोर पड़ रही हैं. इसलिए उन्होंने सामूहिक रूप से निर्णय लेकर गांव में प्रवेश रोकने का ठोस कदम उठाया है.
12 गांवों में धर्मांतरण के खिलाफ बड़ा कदम
कांकेर जिले में अब तक कुल 12 गांवों ने इस तरह से मतांतरण के विरोध में कदम उठाए हैं और गांव की सीमा पर बोर्ड लगाकर ईसाई धर्म प्रचार-प्रसार पर रोक लगाई है. टेकाठोडा (कच्चे) इन गांवों में नवीनतम नाम के रूप में जुड़ा है.
ग्रामीणों की यह पहल अब जिले भर में चर्चा का विषय बन चुकी है. समाज के कई वर्ग इसे आदिवासी संस्कृति की रक्षा और स्वाभिमान से जोड़कर देख रहे हैं, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि इस पर प्रशासन को संवेदनशील दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए ताकि सामाजिक सौहार्द बना रहे.
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