हेमंत शर्मा, इंदौर। शहर के स्वास्थ्य सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। इंदौर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें ऐसे 40 अस्पतालों की लिस्ट दी गई है जो बिना रजिस्ट्रेशन या फर्जी दस्तावेजों के सहारे खुलेआम संचालित हो रहे हैं। याचिका में इन अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई है। खास बात यह है कि इन अस्पतालों में से कई नगर निगम के निर्माण नियमों को भी ताक पर रखकर बनाए गए हैं, और अब कोर्ट के निर्देश पर पूरे मामले की जांच शुरू हो गई है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती- इस याचिका में इंदौर के सीएमएचओ डॉक्टर माधव हसनी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, लेनदेन का
ईकोर्ट एडवोकेट चर्चित शास्त्री ने खुलासा किया है कि डॉ. हसानी अपने अधीनस्थ शिवेंद्र अवस्थी (नरसिंग शाखा) के माध्यम से इन अवैध अस्पतालों से मोटी रकम वसूलते हैं। एडवोकेट शास्त्री ने बताया कि सीएमएचओ के खिलाफ पहले भी कई शिकायतें EOW और लोकायुक्त में की जा चुकी हैं, लेकिन हर बार मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। उन्होंने कहा कि “हमने 40 से ज्यादा अस्पतालों के दस्तावेजों के साथ शिकायतें दीं, पर सीएमएचओ ने एक पर भी कार्रवाई नहीं की। इससे साफ है कि मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, बल्कि सीधा लेनदेन का है।”
40 से ज्यादा अस्पतालों की अनियमितताओं का ब्यौरा
यह पहली बार नहीं है जब माधव हसानी का नाम विवादों में आया हो। Lalluram.com ने पहले भी अपनी एक्सक्लूसिव स्टोरी में फिनिक्स हॉस्पिटल के मामले को उजागर किया था, जहां बिना वैध अनुमति के अस्पताल संचालित हो रहा था। शिकायतों के बावजूद सीएमएचओ ने उस अस्पताल पर भी कोई कार्रवाई नहीं की थी। उस वक्त भी माधव हसानी पर अपने “क्लासमेट” के दबाव में मामले को दबाने के आरोप लगे थे। अब वही पुरानी कहानी नए किरदारों के साथ दोहराई जा रही है। हाईकोर्ट एडवोकेट ने एक बार फिर EOW और लोकायुक्त को डॉक्टर माधव हसनी के खिलाफ लिखित शिकायत सौंपी है, जिसमें इंदौर के 40 से ज्यादा अस्पतालों की अनियमितताओं का पूरा ब्यौरा दिया गया है।
स्वास्थ्य माफिया नेटवर्क” की परतें खोल सकती है
Lalluram.com की जांच बताती है कि इंदौर के स्वास्थ्य विभाग में “हॉस्पिटल से लेकर हसनी तक” पैसों की सीधी डोर जुड़ी हुई है। हाईकोर्ट में चल रही यह जनहित याचिका अब इस “स्वास्थ्य माफिया नेटवर्क” की परतें खोल सकती है, जिसमें प्रशासन की चुप्पी भी उतनी ही खतरनाक है जितना फर्जी इलाज। क्या इंदौर में अब अस्पतालों की जांच होगी या फिर एक बार फिर सीएमएचओ का रसूख सच पर भारी पड़ेगा, यह आने वाले दिनों में तय होगा।
आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद वसूली
पिछले दिनों फिनिक्स हॉस्पिटल में एक मरीज से आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद भी मोटी रकम जमा करवाई गई। जबकि नियम साफ कहते हैं कि आयुष्मान कार्डधारक मरीज से कोई शुल्क नहीं लिया जा सकता। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। सूत्रों का दावा है कि अस्पताल से भारी भरकम रकम सीधे डॉ. हसानी तक पहुंची, जिसके चलते न तो अस्पताल के खिलाफ कोई कदम उठाया गया और न ही उसके अवैध निर्माण पर कोई रोक लगाई गई।
भ्रष्टाचार से प्रमोशन तक का सफर
डॉ. हसानी का विवादों से पुराना नाता है। साल 2015 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के तहत वृद्धजन दिवस का आयोजन दिखाकर फर्जी कैंप बनाए गए। आयोजन हुए नहीं, लेकिन बिल लगा दिए गए। लोकायुक्त जांच में यह गड़बड़ी साबित हुई और शासन ने कार्रवाई भी की। उनकी एक वेतन वृद्धि रोकी गई, वेतन से पैसा काटा गया और शासन को ₹60,125 की हानि का मामला दर्ज हुआ। इसके बावजूद उन्हें इंदौर का सीएमएचओ बना दिया गया।
सेटिंग और सौदेबाज़ी का खेल
डॉ. हसानी की कुर्सी तक पहुंचने के पीछे सेटिंग और लेन-देन का बड़ा खेल बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, उनके क्लासमेट और वर्तमान में वरिष्ठ संयुक्त संचालक राजू निदारिया की पैरवी और दबाव से ही उन्हें यह पद मिला।
वरिष्ठ डॉक्टर दरकिनार
इस विभाग में पूर्णिमा गडरिया, हेमंत गुप्ता, शरद गुप्ता जैसे वरिष्ठ और योग्य डॉक्टर मौजूद थे। लेकिन सभी को नजरअंदाज कर, भ्रष्टाचार की पृष्ठभूमि वाले हसानी को कुर्सी पर बैठा दिया गया।
दिखावा ज्यादा, कार्रवाई कम
डॉ. हसानी पर यह भी आरोप है कि वह अस्पतालों पर निरीक्षण का ड्रामा करते हैं। हाल ही में उन्होंने देर रात ABP अस्पताल का निरीक्षण किया और सुबह तक उसे क्लीन चिट दे दी। दूसरी ओर, फोनिक्स अस्पताल का मामला महीनों से दबा पड़ा है। यानी जो सेटिंग में है, वो बच जाता है। और जो बाहर है, वो फंस जाता है।
दस्तावेज खोलते हैं पोल
lalluram.com के पास उपलब्ध सरकारी पत्रों में साफ लिखा है कि डॉ. हसानी पर भ्रष्टाचार साबित हुआ था। उनकी एक वेतन वृद्धि रोकी गई। वेतन से पैसा काटा गया। लोकायुक्त जांच में गड़बड़ी सिद्ध हुई। फिर भी उन्हें प्रमोशन देकर जिले का सबसे बड़ा स्वास्थ्य अधिकारी बना दिया गया। क्या राजू निदारिया जैसे अफसरों की सेटिंग और दबाव ने पूरा सिस्टम गिरवी रख दिया है? क्या मरीजों की जान सिर्फ पैसों के सौदे में बिक रही है?




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