वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बस्तर जिले के CAF जवान से जुड़े एक संवेदनशील मामले में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपसी सहमति से बने शारीरिक संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। अगर युवती बालिग हो और लंबे समय तक प्रेम संबंध में रही हो, तो शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा।

जानिए क्या है पूरा मामला ?
यह मामला बस्तर जिले से संबंधित है, जिसमें वर्ष 2022 में जगदलपुर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने रूपेश कुमार पुरी को 10 साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई थी। मामला मुख्य रूप से आरोपों पर आधारित था कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाए। हालांकि, हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया।
जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता बालिग थी और आरोपी के साथ साल 2013 से प्रेम संबंध में रही। दोनों की दोस्ती फेसबुक से शुरू हुई और धीरे-धीरे प्रेम संबंध में बदल गई। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता स्वयं आरोपी के घर जाकर उसके साथ रहने और बार-बार संबंध बनाने के लिए सहमत हुई। इस आधार पर यह कहा गया कि आरोपी ने झूठे वादे या धोखे से संबंध नहीं बनाए।
आरोपी ने झूठे वादे या धोखे से संबंध नहीं बनाए
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि पीड़िता ने स्वीकार किया था कि यदि आरोपी के माता-पिता उसे परेशान नहीं करते, तो वह पुलिस में रिपोर्ट नहीं करती। पीड़िता के परिजनों ने भी अदालत में कहा कि यदि उनका परिवार सही तरीके से उनकी बेटी का ध्यान रखता, तो एफआईआर दर्ज नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णयों का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि केवल शादी का वादा करके बनाए गए संबंधों को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि आरोपी के पास शुरू से ही शादी का कोई इरादा नहीं था।
दुष्कर्म के नहीं मिले ठोस प्रमाण
मेडिकल और एफएसएल रिपोर्टों में भी दुष्कर्म के ठोस प्रमाण नहीं मिले। कोर्ट ने इन सभी आधारों को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया कि यह मामला जबरन यौन शोषण का नहीं, बल्कि दोनों पक्षों की सहमति से बने प्रेम संबंध का परिणाम है।
गौरतलब है कि इस फैसले के बाद आरोपी जवान रूपेश कुमार पुरी को ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा से पूर्णतः बरी कर दिया गया है। अदालत का यह निर्णय छत्तीसगढ़ में आपसी सहमति वाले मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है और ऐसे मामलों में ट्रायल कोर्ट के फैसलों पर हाईकोर्ट की समीक्षा की भूमिका को भी रेखांकित करता है।
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