रायपुर. आज कल की तेज और असंतुलित जीवनशैली के चलते कई ऐसी बीमारियां बढ़ने लगी हैं जिनका कुछ समय पहले तक हम नाम भी नहीं सुनते थे ऐसी ही एक बीमारी है. ऑस्टियोआर्थराइटिस जो कि मुख्यतः घुटने के जोड़ को प्रभावित करती है. इस बीमारी का ईलाज काफी सरल है लेकिन फिर भी जागरूकता के आभाव के चलते अक्सर लोग इससे घबराते है. यहाँ तक कि ऑस्टियोआर्थराइटिस एवं जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी का सिर्फ नाम सुनकर ही कई मरीजों के मन में डर बैठ जाता है. इसलिए इस बीमारी के कारण एवं ईलाज के बारे में हर किसी को जानना जरूरी है.

‘आसान शब्दों में कहा जाए तो ऑस्टियोआर्थराइटिस का मतलब है घुटने के जोड़ का बूढ़ा होना हमारा घुटना जांघ की हड्डी (फीमर) एवं पैर की हड्डी (टिबिया) से बना होता है. इन दोनों हड्डियों के सिरों पर एक चिकना लचीला एवं रबर जैसा कार्टिलेज लगा होता है जो दोनों हड्डियों के बीच एक गद्दे की तरह काम करता है और जोड़ को आसानी से मुड़ने में मदद करता है. हमारी हड्डियों में रक्तनालिकाएं और नसें होती हैं इसलिए उनमे चोट लगने पर हमें दर्द होता है लेकिन इसके विपरीत कार्टिलेज में ना ही रक्तनालिकाएं होती हैं और ना ही नसें होती है इसलिए जब एक कार्टिलेज दूसरे पर चलता है तो हमें दर्द नहीं होता है.’

एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के हड्डीरोग एवं जोड़ प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ अंकुर गुप्ता ने बताया. “लेकिन उम्र के साथ धीरे-धीरे यह कार्टिलेज घिसता चला जाता है और हड्डियों के बीच के घर्षण को रोकने की इसकी क्षमता कम हो जाती है कार्टिलेज के इस प्रकार से घिसकर पतले होने को ही चिकित्सकीय भाषा में ऑस्टियोआर्थराइटिस कहा जाता है.  मुख्यतः यह बढ़ती उम्र के कारण होता है लेकिन पुरानी चोट एवं अनुवांशिक कारणों से इसकी संभावना बढ़ जाती है.”

उन्होंने कहा कि जनसामान्य को ऑस्टियोआर्थराइटिस के बारे में जागरूक करने एवं स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल ने एक जाँच शिविर आयोजित किया जिसमें मरीजों को निशुल्क एक्स-रे के साथ ही हड्डीरोग एवं फिजियोथेरेपी विशेषज्ञों द्वारा निशुल्क परामर्श की सुविधा भी उपलब्ध थी. इसके साथ ही हॉस्पिटल में जोड़ प्रत्यारोपण करा चुके मरीजों के साथ एक वॉकेथान का भी आयोजन किया गया जिसमें मरीजों ने 500 मीटर पैदल चलकर साबित कर दिया कि अगर नियमित कसरत की जाए तो घुटनों के ऑपरेशन के बाद भी बिना किसी परेशानी के अपनी दिनचर्या जारी रखी जा सकती है. इस कार्यक्रम में पिछले 5 वर्षों में घुटने का जोड़ प्रत्यारोपण करा चुके कई मरीजों ने अपने अनुभव साझा किये एवं बताया कि किस प्रकार इस सर्जरी की मदद से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आये. इनमें से कुछ मरीज तो 80 वर्ष से अधिक उम्र के थे जो आज एक आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं.