ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने भारत की तारीफ की है. उन्होंने कहा कि 21वीं सदी भारत की सदी है, और आने वाले चार से पांच दशकों में भारत का प्रधानमंत्री विश्व का नेतृत्व कर सकता है. एबॉट ने कहा कि भारत अब वैश्विक ताकत के रूप में उभर रहा है और उसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के मुकाबले एक लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए, साथ ही ऑस्ट्रेलिया का मजबूत और भरोसेमंद साझेदार बनना चाहिए.
भारत को मिली वैश्विक भूमिका की जिम्मेदारी
टोनी एबॉट ने कहा कि भारत ने ऑस्ट्रेलिया (2022) और ब्रिटेन (2024) के साथ जो मुक्त व्यापार समझौते किए हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि लोकतांत्रिक दुनिया अब चीन से दूरी बना रही है. उन्होंने चीन, पाकिस्तान और अमेरिका के साथ भारत के संबंधों पर भी बात की और कहा कि बीजिंग की ‘विश्व पर वर्चस्व’ की महत्वाकांक्षा को रोकने की कुंजी दिल्ली के पास है. उन्होंने कहा कि चीन हावी होना चाहता है और यह उसके सभी पड़ोसियों के लिए खतरे की घंटी है.
चीन पर भारत की 3 बड़ी बढ़त
शुक्रवार को एक वर्ल्ड समिट 2025 में एबॉट ने कहा कि भारत चीन के लिए एक मजबूत संतुलन के रूप में उभर रहा है. भारत अब दुनिया का सबसे जनसंख्या वाला देश है और देशभर में बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं चल रही हैं, नए एयरपोर्ट, सड़कों और विकास कार्यों से भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत के पास तीन बड़ी ताकतें- लोकतंत्र, कानून का शासन, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान हैं. इनके बल पर भारत वही आर्थिक और सैन्य उड़ान भरने की तैयारी में है, जो चीन ने कुछ दशक पहले हासिल की थी. उन्होंने कहा, ‘मैं प्रधानमंत्री रहते कहा करता था कि भारत एक लोकतांत्रिक महाशक्ति बनकर उभरेगा’.
एबॉट ने चेतावनी दी कि ताइवान को लेकर चीन की आक्रामक नीति को हल्के में नहीं लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक देशों को इस खतरे के लिए तैयार रहना होगा. उन्होंने कहा, ‘सबसे अच्छा तरीका यह है कि चीन के शांतिपूर्ण इरादों का दिखावा न किया जाए, बल्कि उसे हर दिन यह बताया जाए कि वह ऐसी घुसपैठ करके बच नहीं सकता. कमजोरी ही उकसावे का कारण बनती है.’ उन्होंने कोरियाई युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि स्थिति बिगड़ सकती है, इसलिए सभी देशों को मिलकर ताइवान की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.
अमेरिका और भारत पर ट्रंप की गलती
एबॉट ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूसी तेल खरीदने पर 25% टैक्स लगाकर गलती की. उन्होंने कहा, ‘मैं ट्रंप का समर्थक हूं, लेकिन उन्होंने भारत के साथ गलत कदम उठाया, जबकि चीन जैसे देश ज्यादा तेल खरीद रहे थे और उन पर ऐसा कोई टैक्स नहीं लगा.’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान भारत की बजाय पाकिस्तान का साथ देकर बड़ी रणनीतिक गलती की. उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान मूल रूप से एक सैन्य समाज है, जबकि भारत एक मजबूत लोकतंत्र है. अमेरिका को समझना चाहिए कि उसके असली और भरोसेमंद दोस्त कौन हैं.’
भारत के पास तीन बड़ी ताकतें- लोकतंत्र, कानून और अंग्रेजी भाषा
एबॉट ने बताया कि भारत के पास तीन बड़ी ताकतें हैं, लोकतंत्र, कानूनी शासन और अंग्रेजी भाषा. एबॉट ने आगे कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2022 में और ब्रिटेन के साथ हाल ही में हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट इस बात के संकेत हैं कि लोकतांत्रिक दुनिया अब चीन से दूरी बना रही है. भारत वही आर्थिक और सैन्य छलांग लगाने की तैयारी में है जो कुछ दशक पहले चीन ने लगाई थी. एबॉट ने कहा कि चीन दुनिया पर वर्चस्व चाहता है और यह उसके पड़ोसी देशों के लिए खतरा है. उन्होंने कहा, ‘चीन हेगेमोनिक (वर्चस्वशाली) पावर बनना चाहता है.’
भारत दुनिया में सबसे ज्यादा 50% अमेरिकी टैरिफ झेल रहा
ट्रम्प प्रशासन ने अगस्त में भारतीय निर्यातों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. इसमें रूस से तेल खरीद पर 25 फीसदी अतिरिक्त जुर्माना शामिल है. ट्रम्प कई बार यह दावा कर चुके हैं कि, भारत के तेल खरीद से मिलने वाले पैसे से रूस, यूक्रेन में जंग को बढ़ावा देता है. ट्रम्प भारत पर अब तक कुल 50 टैरिफ लगा चुके हैं. इसमें 25% रेसीप्रोकल यानी जैसे को तैसा टैरिफ और रूस से तेल खरीदने पर 25% पैनल्टी है. रेसीप्रोकल टैरिफ 7 अगस्त से और पेनल्टी 27 अगस्त से लागू हुआ. व्हाइट हाउस प्रेस सचिव केरोलिना लेविट के मुताबिक इसका मकसद रूस पर सेकेंडरी प्रेशर डालना है, ताकि वह युद्ध खत्म करने पर मजबूर हो सके.
Follow the LALLURAM.COM MP channel on WhatsApp
https://whatsapp.com/channel/0029Va6fzuULSmbeNxuA9j0m
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक

