देशभर में तेजी से बढ़ते ‘डिजिटल अरेस्ट’ फ्रॉड के मामलों के बीच मुंबई पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली है. आर.ए.के. रोड पुलिस ने एक ऐसी अंतरराज्यीय साइबर ठग गिरोह का भंडाफोड़ किया है, जो खुद को एटीएस और एनआईए अफसर बताकर लोगों से करोड़ों रुपये वसूलता था. पुलिस ने इस मामले में गुजरात और राजस्थान से 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. इन लोगों पर मुंबई के एक बुजुर्ग समेत कई राज्यों के नागरिकों से लाखों रुपये ठगने का आरोप है.
क्या है मामला ?
शिकायत के मुताबिक, पीड़ित को 25 सितंबर 2025 को दोपहर 3:57 बजे से लेकर 28 सितंबर 2025 तक फोन और व्हॉट्सऐप कॉल आने लगे. कॉल करने वाले खुद को एटीएस, नई दिल्ली और एनआईए के अधिकारी बताकर धमकाने लगे कि उनका नाम मनी लॉन्ड्रिंग और पीएमएलए केस में आया है. उन्होंने कहा कि पीड़ित के बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिए जाएंगे. इसके बाद आरोपियों ने पीड़ित को वीडियो कॉल पर डराया और खुद को पुलिस अफसर बताकर जांच का नाटक किया. डरे हुए पीड़ित से कुल 70 लाख रुपये ठग लिए गए.
जांच में हुआ हैरान करने वाला खुलासा
पुलिस की जांच में सामने आया है कि यह गैंग चीन और कंबोडिया में बैठे मास्टरमाइंड्स से सीधे संपर्क में था. मुख्य आरोपी को विदेश से बैंक खातों और पैसों के ट्रांसफर के निर्देश मिलते थे. यह नेटवर्क इतने संगठित तरीके से काम कर रहा था कि ठगी की रकम को 138 बैंक खातों में घुमाया जाता था, फिर उसे क्रिप्टोकरेंसी और अमेरिकी डॉलर में बदल दिया जाता था. इस तरह मनी ट्रेल पता नहीं चलता था.
पुलिस की जांच और कार्रवाई
आर.ए.के. रोड पुलिस थाने में मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने साइबर एक्सपर्ट्स की मदद से तकनीकी जांच शुरू की. जांच में करीब 15 बैंक खाते फ्रीज़ किए गए, जिनमें से 10.5 लाख रुपये की रकम जब्त की गई. पुलिस की तकनीकी जांच में सामने आया कि गिरोह के कुछ सदस्य गुजरात और राजस्थान में छिपे हैं. इसके बाद एक विशेष टीम वहां भेजी गई.
इनकी हुई गिरफ़्तारी
मुंबई पुलिस की टीम ने मेहसाणा और अहमदाबाद में छापेमारी कर छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों की पहचान सुरेशकुमार मगनलाल पटेल (51), मुसरन इकबालभाई कुंभार (30), चिराग महेश चौधरी (29), अंकित कुमार महेशभाई शाह (40), वासुदेव उर्फ विवान वालजीभाई बारोट (27) और युवराज उर्फ मार्को उर्फ लक्ष्मण सिंह सिकरवार (34) के रूप में हुई है.
3% कमीशन का खेल
पुलिस उपायुक्त (जोन 4) रागसुधा आर के मुताबिक, गिरोह का सरगना युवराज था, जो सीधे अंतरराष्ट्रीय आरोपियों के संपर्क में था. वह पिछले तीन साल से साइबर धोखाधड़ी में शामिल था. हर ठगी पर 3 प्रतिशत कमीशन पाता था. उसने बैंकों में चालू खाते रखने वाले स्थानीय कारोबारियों को भी अपने जाल में फंसाया और उनके खातों से ठगी के पैसे ट्रांसफर कराए. इसके बदले में मामूली कमीशन दिया.
बुजुर्ग होते थे निशाने पर
जांच में यह भी खुलासा हुआ कि यह गैंग उस हाई-प्रोफाइल डिजिटल फ्रॉड में भी शामिल था, जिसमें एक 72 वर्षीय व्यापारी और उनकी पत्नी को दो महीने तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखकर 58 करोड़ रुपए वसूल लिए गए थे. आरोपी लगातार सीबीआई, ईडी और एनआईए के अफसर बनकर व्यापारी को धमकाते रहे. उन्होंने यहां तक दावा किया कि व्यापारी का नाम पहलगाम आतंकी हमले की जांच में आया है.
प्रारंभिक जांच में यह भी सामने आया कि विदेश में बैठे मास्टरमाइंड्स पीड़ितों को एपीके फाइल भेजते थे. जैसे ही ये फाइलें डाउनलोड होतीं, पीड़ित के फोन पर साइबर ठगों का पूरा नियंत्रण हो जाता था. वे उसकी निजी जानकारियों और डिवाइस एक्सेस का इस्तेमाल कर उसे ठगने के लिए मानसिक दबाव बनाते थे. महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने अब जांच अपने हाथ में ले ली है.
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