राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में साइबर ठगी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। तकनीकी दक्षता और अंतरराष्ट्रीय गिरोहों की रणनीतियों के चलते दिल्लीवासियों को इस साल अब तक 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 के दस महीनों में जालसाजों ने अक्टूबर तक राजधानी के लोगों से कुल 1,000 करोड़ रुपये की ठगी की। हालांकि, पुलिस की कड़ी मेहनत और डिजिटल निगरानी के चलते इस बार ठगी की राशि का 20 प्रतिशत बैंक खातों में रोकने में सफलता मिली है, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी है।
पुलिस उपायुक्त (इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस) विनीत कुमार ने बताया कि पिछले वर्ष जालसाजों ने 1,100 करोड़ रुपये की ठगी की थी, जिसमें केवल 10 प्रतिशत राशि बैंक खातों में रोक पाई गई थी। उन्होंने कहा कि इस बार बैंकिंग प्रणाली के सहयोग से ठगी की रकम का 20 प्रतिशत रोका गया और पीड़ितों को वसूली की प्रक्रिया शुरू की गई। उन्होंने यह भी कहा कि यह जनता के लिए थोड़ी राहत देने वाली कार्रवाई है।
दिल्ली में साइबर ठगी न केवल वित्तीय नुकसान, बल्कि मानसिक तनाव और अविश्वास की भावना भी बढ़ा रही है। पुलिस और बैंकिंग तंत्र के सहयोग से किए गए कदम कुछ हद तक राहत देने वाले हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि सतर्कता ही इस जालसाजी के खिलाफ सबसे मजबूत कवच है।
पुलिस के अनुसार, जालसाज प्रति माह लगभग 100 करोड़ रुपये की ठगी कर रहे हैं। ज्यादातर मामलों में आरोपियों ने विदेशी धरती से गिरोह संचालित किया, लेकिन ठगी के लिए इस्तेमाल किए गए बैंक खाते भारतीय ही रहे। इस पर लगाम लगाने के लिए पुलिस ने विभिन्न बैंकों के साथ समझौते किए हैं। शिकायत मिलने के बाद बैंक अधिकारियों के सहयोग से धोखाधड़ी वाली राशि रोकी जाती है और अदालत के आदेश के बाद पीड़ितों को वापस दिलाई जाती है।
कमीशन का लालच देकर गैंग में शामिल कर रहे
दिल्ली पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि अब बड़े साइबर ठगी गिरोह कंबोडिया, लाओस और वियतनाम जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से ऑपरेशन चला रहे हैं। पुलिस के मुताबिक इन देशों में ज़्यादातर गिरोह चीनी संचालित हैं और वे दुनियाभर के लोगों को निशाना बना रहे हैं — इसके लिए स्थानीय भारतीय मदद और नेटवर्क का सहारा लिया जा रहा है।
गिरोह कमीशन के लालच में स्थानीय लोगों को भर्ती करते हैं।
स्थानीय सहयोगी फर्जी दस्तावेजों की मदद से भारतीय बैंक खाते और सिम कार्ड खोलवाते हैं।
इन भारतीय सिम कार्ड और खातों का उपयोग कर विदेश से फोन/मैसेज करके लक्ष्य को फ़साया जाता है और धन निकाला जाता है।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि हर माह तकरीबन ₹100 करोड़ की ठगी होती रही है; 2025 के पहले दस महीनों में कुल धोखाधड़ी का अनुमान लगभग ₹1,000 करोड़ के पार है। पुलिस ने बैंकों के साथ समझौते कर धोखाधड़ी वाली रकम रोकने की व्यवस्था की है — इस बार लगभग 20% रकम बैंक खातों में रोकी जा सकी, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी सफलता है।
पुलिस की कार्रवाइयाँ और चेतावनी:
दिल्ली पुलिस ने दक्षिण पूर्व एशियाई नेटवर्कों के खिलाफ जाँच तेज कर दी है और बैंकिंग संस्थानों के साथ समन्वय बढ़ाया है। अपराध रोकने के लिए बैंक शिकायत मिलने पर अग्रिम रोकथाम और अदालत के आदेश पर वसूली की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। पुलिस ने नागरिकों से सतर्क रहने की अपील की है. अनचाहे कॉल/लिंक पर भरोसा न करें, बैंक लिंक/OTP किसी से साझा न करें और संदिग्ध गतिविधि होने पर तत्काल बैंक व नजदीकी थाने/साइबर सेल को सूचित करें।
नए तरीकों से हो रही ठगी — तीन प्रमुख स्कीमें और उनसे बचने के उपाय
1) निवेश (Investment) के नाम पर “महिलाओं/गर्ल्स” की फेक प्रोफ़ाइल
कैसे काम करता है: धोखेबाज सोशल मीडिया/मैसेजिंग पर आकर्षक महिला प्रोफाइल बनाकर लोगों को आकर्षक रिटर्न का झांसा देते हैं। फिर वे निवेश ग्रुपों/टेलीग्राम चैनल/व्हाट्सऐप समूहों में लक्षित कर सदस्य बनाते हैं और शुरुआती कुछ लोगों को रिटर्न दिखाकर भरोसा बनवाते हैं — बाद में बड़ी रकम ऐंठ ली जाती है।
निशानियाँ (Red flags):
बिना वैरिफिकेशन के “गर्ल”/इन्फ्लुएंसर प्रोफाइल जो तेज़ रिटर्न का वादा करे।
व्यक्तिगत चैट में जल्दी से निवेश करने का दबाव।
पेमेन्ट के लिए सिर्फ वॉलेट/प्रेपेड/फास्ट ट्रांसफर विकल्प।
पब्लिक/रेगुलेटेड निवेश उत्पादों का कोई प्रमाण न होना।
फौरन करें: किसी भी निवेश से पहले उसके लाइसेंस/रेगुलेटर (SEBI आदि) में चेक करें; छोटे छोटे ट्रांजैक्शन से शुरू करें; संदिग्ध लगे तो तुरंत समूह छोड़ दें और स्क्रीनशॉट, चैट बैक अप रख लें।
2) “बॉस के नाम पर” — कॉर्पोरेट प्रेटेक्स्टिंग (Business Email/SMS Compromise)
कैसे काम करता है: धोखेबाज खुद को कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी/बॉस के रूप में प्रस्तुत करते हैं और कर्मचारियों को फर्जी निर्देश/एम्प्टीड अनुरोध भेजकर फंड ट्रांसफर करवा लेते हैं — अक्सर तत्कालता का दबाव दिखाकर।
निशानियाँ:
अचानक और अनसुलझे बैंक ट्रांसफर/गिफ्ट कार्ड/कन्फिडेंशियल जानकारी माँगना।
अनुरोध जो कंपनी नियमों के खिलाफ हो या असामान्य लगें।
मेल/नंबर में छोटे से स्पेलिंग बदलाव (ex: rajesh.varma@ vs rajesh.varma1@)।
फौरन करें: आधिकारिक चैनल से वेरिफाई करें — फोन पर कॉल बैक कर के पुष्टि लें (मेल पर रिप्लाई न करें); वित्त टीम के कंट्रोल प्रोसेस फॉलो करें; संदिग्ध अनुरोध की स्क्रीनशॉट रखें और IT/cyber टीम को रिपोर्ट करें।
3) “डिजिटल अरेस्ट” — पुलिस/सरकारी अधिकारी बनाकर डराना धमकाना
कैसे काम करता है: जालसाज खुद को पुलिस, आयकर अधिकारी या अन्य सरकारी पदाधिकारी दिखाकर कॉल/वॉयस क्लोनिंग/फ़ेक नोटिस भेजते हैं; धमकी देकर या कानूनी कार्रवाई का भय दिखाकर पैसे/OTP/बैंक विवरण माँगते हैं।
निशानियाँ:
आधिकारिक नोटिस/संदेश पर अनाम लिंक/फोर्म भरवाना।
बैंकिंग OTP, CVV या पासवर्ड माँगा जाना (सरकारी अधिकारी कभी नहीं माँगते)।
धमकी या तुरंत भुगतान का दबाव।
फौरन करें: कॉल बंद कर दें; आधिकारिक वेबसाइट/हेल्पलाइन से पुष्टि करें; OTP/पासवर्ड किसी से साझा न करें; यदि पैसे चले गए तो तुरंत बैंक को कॉल कर रोकथाम माँगें और नजदीकी थाने/साइबर सेल में शिकायत दर्ज कराएँ।
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