Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच सियासी बयानबाज़ी का दौर जारी है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने मधेपुरा से शरद यादव के बेटे शांतनु यादव को टिकट न दिए जाने पर नाराज़गी जताई है। राजद ने यहां से मौजूदा विधायक प्रोफेसर चंद्रशेखर को प्रत्याशी बनाया है।

शिवानंद तिवारी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा कि शरद यादव का बेटा चुनाव नहीं लड़ पाया, यह बेहद पीड़ादायक है। उन्होंने शरद यादव के साथ अपने लंबे राजनीतिक संबंधों और उनके योगदान को विस्तार से याद किया।

1969 में हुई थी पहली मुलाकात

तिवारी ने बताया कि उनकी पहली मुलाक़ात शरद यादव से 1969 में जबलपुर में हुई थी, जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ था। उस समय शरद यादव स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष और सम्मेलन में वालंटियर थे। तिवारी ने कहा कि शरद यादव ने उन्हें कॉलेज में सभा करने का आमंत्रण भी दिया था।

राजनीति में शरद यादव की भूमिका

शिवानंद तिवारी ने कहा कि जबलपुर और बदायूं से चुनाव हारने के बाद शरद यादव बिहार आए और यहां की राजनीति से गहराई से जुड़े। कर्पूरी ठाकुर और राजनारायण के बाद समाजवादी धारा में उभरने वाले नेताओं में शरद यादव की अहम भूमिका रही। विशेषकर लालू प्रसाद यादव की राजनीति को मज़बूती देने में उनका योगदान महत्वपूर्ण था।

परिवार की इच्छा पूरी नहीं हुई

शिवानंद तिवारी ने कहा कि शरद यादव ने मधेपुरा को अपना घर बना लिया था और वहीं बस गए थे। परिवार की खासकर उनकी पत्नी रेखा यादव की इच्छा थी कि शरद यादव के बाद उनके बेटे शांतनु को चुनाव लड़ने का मौका मिले। लेकिन न तो लोकसभा चुनाव में और न ही अब विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिला।

उन्होंने कहा कि यदि शरद यादव के बेटे को टिकट दिया जाता तो शायद जीतना मुश्किल होता, लेकिन इससे लालू प्रसाद यादव उनके ऋण से मुक्त हो जाते। उन्होंने यह भी बताया कि टिकट नहीं मिलने से शरद यादव की पत्नी रेखा यादव बेहद दुखी और निराश हैं।

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