पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। गरियाबंद जिले के मैनपुर-कला गांव में गोवर्धन पूजा के अवसर पर एक अनूठी और सदियों पुरानी परंपरा निभाई जाती है. यहां गोबर से बने गोवर्धन पर्वत को गौवंशों द्वारा रौंदाया जाता है. लेकिन इस दौरान एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है, जिसे देखकर सभी हैरान हो जाते हैं. गोवर्धन पर्वत के सामने दो पुरुषों को बैठाया जाता है, जिनपर देव सवार होते हैं. गांव में इन्हें सिरहा कहते हैं, जिन्हें गोवर्धन पर्वत के साथ-साथ ही गौवंशों द्वारा रौंदाया जाता है, लेकिन फिर भी सिरहा (देव सवार पुरुषों) को एक खरोच भी नहीं आती है.

जानकारी के अनुसार, इस वर्ष यह सम्मान कुंदरू यादव और जीवन यादव को दिया गया. परंपरा अनुसार पहले इनके पूर्वजों पर ही देव सवार होते थे. पूजन और तैयारी के बाद गांव भर के लोग अपने-अपने गौ वंश को लेकर सिरहा के ऊपर रौंदते हैं. देखने में यह खतरनाक लगता है, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार, दैवीय शक्ति के चलते सिरहा को एक भी खरोच नहीं आती.
ग्रामीणों का कहना है कि मिशल के अनुसार गांव का उल्लेख राजस्व रिकॉर्ड में 1921 से मिलता है, लेकिन यह अनोखी परंपरा सैंकड़ों सालों से निभाई जाती है. पहले इस प्रक्रिया में 200 से अधिक गायें शामिल होती थीं, जबकि अब संख्या धीरे-धीरे घट गई हैं.
फसल और गांव को रोग-व्याधि से सुरक्षा
गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर्वत को रौंदने के बाद, इसे ग्रामीण अपने घर ले जाते हैं. खेतों में छींटते हैं, घर के मुख्य द्वार पर लगाते हैं और माथे पर परिवार सहित तिलक करते हैं. मान्यता है कि इससे फसल रोग मुक्त रहती है और चेचक जैसी बीमारियां गांव में नहीं आतीं.
वर्षों पुरानी इस परंपरा में ग्रामीणों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है, जो न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती है, बल्कि स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रतीक भी मानी जाती है.
देखें इस अनोखी परंपरा का वीडियो:
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