Chhath Puja Lauki Bhaat Tradition: दीवाली के बाद छठ पर्व की शुरुआत होती है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रती निर्जला व्रत रखती हैं. यह व्रत खासतौर से सूर्य देव और छठी मइया के नाम से जाना जाता है. यह पर्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. छठ पर्व शुरू होते ही घरों में सुबह से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं. ‘नहाय-खाय’ यानी छठ पूजा का पहला दिन. इस दिन भक्त पवित्र स्नान करके सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें खासतौर से लौकी की सब्जी और चावल (लौकी-भात) बनाया जाता है. छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जाती है.

चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. माना जाता है कि इस व्रत को सच्चे मन से करने पर परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है. आइए जानते हैं कि छठ पूजा के पहले दिन लौकी-भात खाने की क्या परंपरा है.

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लौकी-भात खाने की परंपरा क्यों है? (Chhath Puja Lauki Bhaat Tradition)

शुद्धता का प्रतीक

लौकी (घीया) एक ऐसी सब्जी है जो सात्विक मानी जाती है. यह हल्की, पचने में आसान और शरीर को शुद्ध रखती है. चूंकि छठ व्रत में शरीर और मन की पवित्रता का विशेष महत्व है, इसलिए लौकी-भात को व्रत का पहला भोजन माना जाता है.

शरीर को ठंडक और संतुलन प्रदान करता है

छठ पर्व कार्तिक महीने में आता है, जब मौसम बदलता है. लौकी शरीर के तापमान को संतुलित रखती है और पाचन तंत्र को दुरुस्त करती है, जिससे व्रती अगले दिनों का निर्जला उपवास सहन कर सकें.

सादगी और पवित्रता का प्रतीक

लौकी-भात साधारण और सात्विक भोजन है. यह इस बात का संकेत है कि व्रती भोग-विलास से दूर होकर सादगी, संयम और श्रद्धा के मार्ग पर चलती हैं.

घी का प्रयोग

लौकी-भात को आमतौर पर शुद्ध देशी घी में बनाया जाता है. घी को पवित्र और ऊर्जादायक माना गया है. इससे शरीर में ऊर्जा बनी रहती है और यह भोजन को दिव्यता प्रदान करता है.

धार्मिक मान्यता

लोक मान्यता के अनुसार, “छठी मइया को सात्विकता और शुद्धता प्रिय है.” इसलिए व्रती पहले दिन ऐसे भोजन से शुरुआत करती हैं जो पूरी तरह पवित्र, हल्का और सात्विक हो.

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