विकास कुमार, सहरसा। जिले के बलुआहाट गांव के किसान मो. ताहिर ने यह साबित कर दिया है कि अगर लगन और सोच नई हो, तो बेकार जमीन भी सोना उगल सकती है। बरसों से बंजर पड़ी उनकी दो बीघा जमीन अब मीठे सिंघाड़े की खेती से हर साल लाखों की आमदनी दे रही है।
लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के दौरान सिंघाड़े की मांग चरम पर होती है। यही कारण है कि मो. ताहिर के खेतों में उगाए गए मीठे और रसीले सिंघाड़े बाजारों में हाथों-हाथ बिक जाते हैं। मो. ताहिर बताते हैं कि पहले उनकी जमीन पर धान या सब्जी की फसलें पानी भरने से खराब हो जाती थीं। “हमारी दो बीघा जमीन सालों तक बेकार रही। फिर सिंघाड़ा खेती की जानकारी मिली। अप्रैल-मई में नर्सरी लगाई और जून में रोपाई की। अब हर साल करीब एक लाख रुपये की कमाई हो रही है,” वे मुस्कुराते हुए कहते हैं।
यह फसल गर्मी में बोई जाती है और दिवाली-छठ तक तैयार हो जाती है। खाने में मीठा और स्वादिष्ट सिंघाड़ा व्रत-उपवास के लिए सबसे पसंदीदा फल बन चुका है। बलुआहाट जैसे इलाकों में मानसून के बाद खेतों में पानी ठहरना आम बात है। जहां परंपरागत फसलें डूब जाती हैं, वहीं सिंघाड़ा और मखाना जैसी जलीय फसलें किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं।
मो. ताहिर अब छठ के बाद इसी तालाब में मखाना की खेती करते हैं। वे बताते हैं कि “इन दोनों फसलों से साल भर अच्छी आमदनी हो जाती है। दिवाली-छठ के मौसम में तो सिंघाड़ा सोने के भाव बिकता है।”
विशेषज्ञों के अनुसार, सिंघाड़ा बिहार के निचले इलाकों के लिए वरदान है। सहरसा सहित कोशी क्षेत्र में इसका रकबा लगातार बढ़ रहा है। यह एक जलीय खरीफ फसल है, जो दो से तीन फीट पानी वाले तालाब, पोखर या खेतों में अच्छी तरह पनपती है।
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