ISRO Mission: चंद्रयान- 3 (Chandrayaan-3) को चांद पर सफलतापूर्वक पहुंचाने वाले रॉकेट LVM3 (Rocket LVM3) से इसरो एक बार फिर फिर सेटेलाइट लॉन्च की तैयारी कर रहा है। 2 नवंबर को देश का सबसे भारी सैटेलाइट CMS-03 (CMS-03 satellite) लॉन्च किया जाएगा। इसका वजन 4400 किलोग्राम है। यह भारतीय नौसेना (Indian Navy) के लिए बनाया गया सैटेलाइट है। यह भारत के समुद्री इलाकों पर नजर रखेगा।

CMS-03 (कम्युनिकेशन सैटेलाइट-03) एक मल्टी-बैंड संचार उपग्रह है, जो GSAT-7R या GSAT-N2 के नाम से भी जाना जाता है। यह भारतीय नौसेना के लिए बनाया गया है (रक्षा मंत्रालय द्वारा फंडेड), जो समुद्री इलाकों में सुरक्षित संचार देगा. वजन 4,400 किलोग्राम का यह उपग्रह भारत से GTO में लॉन्च होने वाला सबसे भारी संचार सैटेलाइट होगा।

यह रॉकेट उड़ान के दौरान अलग-अलग चरणों में काम करता है। पहले दो मिनट में बूस्टर जलते हैं. फिर कोर स्टेज। आखिर में अपर स्टेज उपग्रह को सही कक्षा में छोड़ता है। पूरी उड़ान 20-25 मिनट की होती है। अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपनी शक्तिशाली LVM3 रॉकेट से CMS-03 कम्यूनिकेशन सैटेलाइट को लॉन्च करेगा। यह LVM3 का 5वीं ऑपरेशनल फ्लाइट (LVM3-M5) होगी. CMS-03 भारत का अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह होगा। जिसका वजन लगभग 4,400 किलोग्राम है।

LVM3 रॉकेट: भारत की ‘बाहुबली’ लॉन्च व्हीकल

LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3) ISRO की सबसे ताकतवर रॉकेट है, जिसे ‘बाहुबली’ भी कहा जाता है। यह तीन चरणों वाली मध्यम-भारी लिफ्ट रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंडाकार जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में भेज सकती है।

क्यों खासः LVM3 भारत की स्वदेशी तकनीक का प्रतीक है. यह 4 टन तक के उपग्रह GTO में भेज सकती है, जो PSLV या GSLV Mk-II से ज्यादा है। पहले विदेशी रॉकेट्स पर निर्भरता थी, लेकिन अब ISRO खुद बड़े उपग्रह लॉन्च करता है।

विकास: 2000 के दशक में शुरू. पहली सफल फ्लाइट 2014 में. अब तक 7 सफल मिशन।  

पिछला मिशन: LVM3-M4 ने जुलाई 2023 में चंद्रयान-3 लॉन्च किया। विक्रम लैंडर ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की. इससे भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बना।

LVM3 की मुख्य स्पेसिफिकेशन्स 

  • ऊंचाईः 43.5 मीटर (14 मंजिल ऊंचा.)
  • लिफ्ट-ऑफ वजनः 640 टन (एक बड़े हाथी का 800 गुना वजन)
  • चरणः 3 (2 सॉलिड बूस्टर + 1 लिक्विड कोर + 1 क्रायोजेनिक अपर)
  • बूस्टर इंजनः S200 (सॉलिड फ्यूल, 205 टन HTPB ईंधन)
  • कोर स्टेजः L110 (लिक्विड फ्यूल, Vikas इंजन)
  • अपर स्टेजः CE-20 (क्रायोजेनिक, LOX/LH2 फ्यूल)
  • पेलोड फेयरिंगः 5 मीटर व्यास (उपग्रह को ढकने वाला ढक्कन)
  • GTO पेलोड क्षमताः 4 टन (CMS-03 जैसा भारी उपग्रह आसानी से.)
  • लॉन्च साइटः श्रीहरिकोटा (सतीश धवन स्पेस सेंटर)

क्या करेगा? यह Ka-बैंड हाई-थ्रूपुट (HTS) तकनीक से काम करेगा। 40 बीम्स (सिग्नल कवरेज एरिया) के साथ 70 Gbps (गीगाबिट प्रति सेकंड) स्पीड देगा। भारतीय महासागर, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और भारतीय भूमि पर सेवाएं – जैसे वॉयस, डेटा, वीडियो कॉल, नेविगेशन और सैन्य कम्युनिकेशन।

कब तक काम करेगा: 14-15 साल. GEO (36,000 किमी ऊंचाई) में स्थापित होगा, जहां से हमेशा एक ही जगह दिखेगा।

महत्व: नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और तट रक्षकों को रीयल-टाइम कनेक्टिविटी। आपदा प्रबंधन, मछली पकड़ने और पर्यटन में भी मदद।

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