Lalluram Desk. भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से उस मोड़ पर पहुंच रही है, जहां आम नागरिक की आय, खर्च करने की क्षमता और उपभोग पैटर्न बदल रहे हैं. ग्लोबल एसेट मैनेजमेंट फर्म फ्रैंकलिन टेम्पलटन की नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि 2031 तक देश की प्रति व्यक्ति आय ₹4.63 लाख तक पहुंच सकती है. यह संकेत है कि भारत धीरे-धीरे “लो इनकम” से “एस्पिरेशनल इकॉनमी” की दिशा में कदम बढ़ा चुका है.
रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि इस साल के अंत तक भारत में ₹10 लाख से अधिक सालाना आय वाले परिवारों की संख्या 10 करोड़ हो जाएगी. वर्ष 2013 में ऐसे परिवारों की संख्या मात्र 6 करोड़ थी. यानी, सिर्फ एक दशक में 4 करोड़ नए परिवार उस आर्थिक वर्ग में पहुंचे हैं, जिनकी आय मध्यमवर्गीय उपभोग से ऊपर है. ये परिवार अब देश की कुल खपत का लगभग 40% हिस्सा संभालेंगे.
खपत में आएगा जबरदस्त उछाल
विश्लेषकों के मुताबिक, आय बढ़ने का सबसे सीधा असर खपत पर दिखता है. आने वाले वर्षों में कार, मकान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, एफएमसीजी और लक्जरी ब्रांड्स की बिक्री में तीव्र वृद्धि देखने को मिलेगी.
2010 से 2024 के बीच प्रति व्यक्ति आय लगभग दोगुनी होकर ₹2.41 लाख हो चुकी है. अगर मौजूदा आर्थिक रफ्तार बरकरार रही, तो 2031 तक यह आंकड़ा ₹4.63 लाख को पार कर जाएगा. इसका अर्थ है कि औसतन हर भारतीय की जेब में पहले से दोगुना खर्च करने की क्षमता होगी — जिससे प्रीमियम उत्पाद, ट्रैवल, हेल्थकेयर और एंटरटेनमेंट जैसे सेक्टरों में निवेश बढ़ेगा.
भारत बन रहा है ‘आकांक्षा-प्रेरित अर्थव्यवस्था’
रिपोर्ट का कहना है कि भारत अब सिर्फ “सर्वाइवल” नहीं, बल्कि “आकांक्षा” पर आधारित अर्थव्यवस्था बन चुका है.लोग अब जरूरी जरूरतों से आगे जाकर जीवनस्तर को बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं.
यही कारण है कि 2024 से 2030 के बीच भारत की जीडीपी में 11% कंपाउंड ग्रोथ रेट (CAGR) की संभावना जताई गई है. तब तक देश की कुल अर्थव्यवस्था का आकार ₹644 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है — जिसमें घरेलू खपत की हिस्सेदारी 60% से अधिक होगी.
वैश्विक बाजार में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश बनेगा भारत
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अगले वर्ष तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन सकता है. 2013 में जहां घरेलू खपत ₹88 लाख करोड़ थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर ₹185 लाख करोड़ हो गई है — जो अमेरिका, चीन और जर्मनी की तुलना में कहीं तेज रफ्तार से बढ़ी है.
तरक्की के तीन अहम संकेतक (Key Growth Indicators):
बचत और निवेश में उछाल:
सितंबर 2025 में लोगों ने ₹29,361 करोड़ की राशि SIP (Systematic Investment Plan) के रूप में म्यूचुअल फंड्स में निवेश की. पांच साल पहले यही आंकड़ा मात्र ₹10,351 करोड़ था. यह दिखाता है कि अब निवेश आम भारतीय की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है.
तेज शहरीकरण:
वर्ष 2013 में भारत की शहरी आबादी 32% थी, जो अब 40% हो चुकी है. ग्रामीण इलाकों में भी प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 2012 के ₹1,429 से बढ़कर ₹3,774 तक पहुंच गया है. यह परिवर्तन न केवल उपभोग का भूगोल बदल रहा है, बल्कि रोजगार और कारोबार के नए अवसर भी पैदा कर रहा है.
प्रीमियम उत्पादों की मांग में वृद्धि:
2020 में जहां एफएमसीजी बाजार में प्रीमियम प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 20% थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर 30-35% हो चुकी है. विशेषज्ञ मानते हैं कि 2025 तक यह बाजार ₹5 लाख करोड़ का हो जाएगा.
अर्थव्यवस्था के भविष्य का संकेत
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह दौर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. आय में यह वृद्धि सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत को उपभोग-प्रधान वैश्विक ताकत के रूप में स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम है.
2031 तक अगर यही रफ्तार बनी रही, तो भारत न केवल तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े ‘स्पेंडिंग मिडल क्लास’ का घर भी बनेगा.
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