अब एम्स (AIIMS) जैसे बड़े चिकित्सा संस्थानों में भी हिंदी में कामकाज किया जाएगा। छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में उपलब्ध कराई जाएगी। डॉक्टर भी मरीजों को दवाइयों के नाम और सलाह हिंदी में लिखकर देंगे, ताकि आम लोगों को पर्चे आसानी से समझ में आ सकें। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी एम्स संस्थानों को इसके लिए निर्देश भेज दिए हैं। निर्देश मिलने के बाद एम्स के हिंदी विभाग ने सभी विभागों को हिंदी में काम शुरू करने की तैयारी करने को कहा है। इस बदलाव को लागू करने के लिए पूरा प्लान तैयार कर लिया गया है।

मंत्रालय के निर्देशों अनुसार, एम्स में मेडिकल शिक्षा के लिए हिंदी में प्रकाशित पुस्तकों की खरीद की जाएगी। साथ ही मेडिकल के क्षेत्र में शोध कार्य को भी हिंदी में करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। संस्थान के हिंदी अनुभाग ने सभी विभागों को चरणबद्ध तरीके से हिंदी में काम शुरू करने का निर्देश दिया है। डॉक्टरों और कर्मचारियों को कार्यालय और चिकित्सा कार्यों में हिंदी का अधिक प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। इस बदलाव को लागू करने के लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर ली गई है।

इसके अलावा, एम्स को मिलने वाले पत्रों का जवाब भी हिंदी में दिया जाएगा, भले ही पत्र अंग्रेजी में ही क्यों न प्राप्त हुआ हो। आवश्यकता होने पर पत्र के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी भेजा जा सकेगा। मंत्रालय ने सभी विभागों से इस प्रक्रिया की प्रगति रिपोर्ट नियमित रूप से भेजने को कहा है।

सरकार का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ाना और स्वास्थ्य सेवाओं को आम जनता के लिए और अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाना है। माना जा रहा है कि इससे मरीजों और उनके परिजनों को उपचार संबंधी जानकारी समझने में बड़ी सुविधा मिलेगी।

एम्स में हिंदी को बढ़ावा देंगे, लेकिन छात्रों पर दबाव नहीं

हालांकि, फिलहाल मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में करना वैकल्पिक रहेगा। आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि सिर्फ हिंदी में पढ़ाई करने की बाध्यता नहीं होगी। छात्रों की सुविधा के लिए कई शब्द हिंग्लिश रूप में भी इस्तेमाल होंगे। जिन छात्रों की प्राथमिक भाषा हिंदी नहीं है या जो अंग्रेजी में पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं, उन पर कोई दबाव नहीं बनाया जाएगा।

एम्स में अध्ययनरत छात्रों का कहना है कि मेडिकल की पढ़ाई को पूरी तरह हिंदी में लागू करना सरल नहीं होगा, क्योंकि कई चिकित्सा शब्द आम बोलचाल में भी अंग्रेजी में ही इस्तेमाल किए जाते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में कराई जा रही है, वहाँ भी ‘हार्ट’ को ‘हृदय’ और ‘लिवर’ को ‘यकृत’ लिखने के बजाय हार्ट और लिवर ही लिखा जाता है। छात्रों का कहना है कि इसी तरह कई अन्य तकनीकी शब्द हैं जिनका हिंदी अनुवाद न तो प्रचलित है और न ही आसानी से समझा जा सकता है।

वहीं, एम्स प्रबंधन इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर बोलने से बच रहा है। संस्थान से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इस व्यवस्था को लागू करने में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। वर्तमान में एम्स में हिंदी भाषा में मेडिकल विषयों की पर्याप्त किताबें उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा संस्थान में दक्षिण और पूर्व भारत से आने वाले बड़ी संख्या में ऐसे छात्र हैं, जिनके लिए हिंदी में पढ़ाई करना कठिन हो सकता है।

मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार:

  • मेडिकल की पढ़ाई के लिए हिंदी में उपलब्ध पुस्तकों की खरीद की जाएगी
  • शोध कार्यों को हिंदी में करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा
  • मरीजों के पर्चों पर दवाइयों और सलाह को हिंदी में लिखा जाएगा
  • एम्स को मिलने वाले पत्रों का उत्तर हिंदी में दिया जाएगा (आवश्यकता पर अंग्रेजी अनुवाद भी भेजा जा सकेगा)
  • सभी विभागों को इस प्रक्रिया की प्रगति रिपोर्ट भेजनी होगी

साथ ही, प्रशासनिक कार्यों में भी बदलाव किए जा रहे हैं:

  • लैटरहेड, विजिटिंग कार्ड और अन्य आधिकारिक दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जारी किए जाएंगे
  • फाइलों पर नोटिंग अधिकतम हिंदी में करने के निर्देश दिए गए हैं
  • डॉक्टरों और कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाओं में प्रविष्टियाँ हिंदी में की जाएंगी
  • बैठकों में अंग्रेजी के प्रयोग को घटाने पर जोर दिया जाएगा

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