वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने बिलासपुर के मिशन अस्पताल के स्वामित्व को लेकर चल रहे विवाद में फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह याचिका क्रिश्चियन वुमन बोर्ड ऑफ मिशन्स (सीडब्ल्यूबीएम) की ओर से लगाई गई है, जिसमें कहा गया है कि प्रशासन ने 12 एकड़ जमीन का अधिग्रहण गलत तरीके से किया है। तोड़फोड़ भी नियमों के खिलाफ की गई है। वहीं शासन की ओर से पूरी कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा गया कि याचिकाकर्ताओं को याचिका दायर करने का ही अधिकार नहीं है। शासन की ओर से कहा गया कि प्रस्तुत की गई पॉवर ऑफ अटॉर्नी किसी अन्य संस्था से संबंधित है।


दरअसल, मिशन अस्पताल की स्थापना साल 1885 में हुई। मिशन अस्पताल को लीज पर दिया गया था। लीज साल 2014 में खत्म हो गई है। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने लीज का नवीनीकरण नहीं कराया है। नवीनीकरण के लिए पेश किए गए आवेदन को नजूल न्यायालय ने वर्ष 2024 में खारिज कर दिया। नजूल न्यायालय के खिलाफ मिशन प्रबंधन ने कमिश्नर कोर्ट में अपील की थी। वहां से भी राहत नहीं मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
सिंगल बेंच में सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल ने दो दिनों की लगातार बहस में कोर्ट को यह साबित किया कि नितिन लॉरेंस हर याचिका में अपना पद बदल रहे थे और विभिन्न संस्थाओं की पॉवर ऑफ अटॉर्नी प्रस्तुत कर रहे थे। यह गलत और गुमराह करने वाला है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने लारेंस की याचिका को खारिज कर दिया। इसके खिलाफ डीबी में अपील की गई है। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद सोमवार को हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

