गौरव जैन, गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही। छत्तीसगढ़ राज्य इस वर्ष अपने गठन की रजत जयंती मना रहा है। एक ओर प्रदेश भर में विकास और उपलब्धियों के उत्सव का माहौल है, वहीं दूसरी ओर राज्य के 28वें जिले गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही के मरवाही जनपद पंचायत अंतर्गत आने वाले दूरस्थ ग्राम ढपनीपानी के सैकड़ों आदिवासी परिवार अब भी अपनी पहचान और मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

बता दें कि राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया आज यानी मंगलवार, 4 नवंबर से शुरू हो चुकी है। इस दौरान बीएलओ घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान की जांच और दस्तावेजों का सत्यापन कर रहे हैं। लेकिन ढपनीपानी के धनुहार जनजाति के 118 आदिवासियों के पास आज भी न तो आधार कार्ड है, न ही वोटर आईडी, जिससे वे इस प्रक्रिया से भी वंचित हैं।
पहचान पत्र न होने से सरकारी योजनाओं से वंचित
इन ग्रामीणों की स्थिति यह है कि पहचान पत्रों के अभाव में उन्हें राशन कार्ड भी नहीं मिल पा रहा। खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मिलने वाले अनाज की सुविधा से भी वे वंचित हैं। बैंक खाता खोलने, पेंशन योजना का लाभ लेने और किसी भी सरकारी सहायता तक पहुँचने के लिए इन्हें दर-दर भटकना पड़ता है।
ग्रामवासियों का कहना है कि कई बार प्रशासन को अवगत कराने के बाद भी कोई ठोस समाधान नहीं निकला। वर्षों से वे विभिन्न अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को अपनी व्यथा सुना रहे हैं, लेकिन अब तक स्थिति जस की तस बनी हुई है।
स्वच्छ पेयजल का भी अभाव
पहचान की इस लड़ाई के साथ-साथ ढपनीपानी के लोगों को एक और गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है — शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में नलजल योजना या हैंडपंप जैसी कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। मजबूरी में वे ढोढ़ी (तालाबनुमा जलस्रोत) का गंदा पानी पीने को विवश हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ गए हैं।
ग्रामीणों ने कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
ग्रामवासियों ने आज जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर अपनी समस्याओं के शीघ्र समाधान की मांग की है। उनका कहना है कि जब तक आधार कार्ड और पहचान पत्र नहीं बनेंगे, तब तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ उनके घरों तक नहीं पहुंचेगा।

चुनावी वादे और हकीकत के बीच फंसे ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि हर चुनाव में नेता उनके घरों तक पहुंचकर वादे करते हैं, लेकिन चुनाव बीतते ही सब कुछ भुला दिया जाता है। कई सरकारें बदलीं, अधिकारियों का तबादला हुआ, पर इन आदिवासियों की जिंदगी में अब तक कोई बदलाव नहीं आया।
अब जबकि राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया चल रही है, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन इन पहचान-विहीन आदिवासी परिवारों तक भी पहुँच बनाएगा या नहीं। यदि ढपनीपानी के इन परिवारों को आधार और वोटर आईडी जैसी मूलभूत पहचान मिलती है, तो न केवल उनकी सरकारी योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित होगी, बल्कि वे लोकतंत्र की मुख्यधारा से भी जुड़ पाएंगे।
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