CG News : अमित पांडेय, खैरागढ़. खैरागढ़ नगर पालिका में एक बार फिर भ्रष्टाचार की परतें फिर खुलने लगी हैं. एक के बाद एक मुख्य नगर पालिका अधिकारियों के निलंबन और तबादले के बावजूद यहां की कार्यशैली में सुधार तो दूर, अब तो खुलेआम “रिश्तेदारी का राज” चलता दिखाई दे रहा है. ताजा मामला दुकानों की नीलामी से जुड़ा है, जिसमें जिम्मेदारों ने आपसी सेटिंग करके पालिका को करीब 64 लाख 77 हजार रुपए का नुकसान पहुंचाया गया. इस मामले में विधायक प्रतिनिधि मनराखन देवांगन ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है और मुख्य सचिव से इसकी शिकायत करने की बात कही है.

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नगर पालिका ने फतेह मैदान स्थित पुराने थाने के पास की तीन और धरमपुरा मणिकंचन केंद्र की आठ दुकानों की नीलामी दो चरणों में की थी. पहली नीलामी 12 मई 2022 और दूसरी 14 जुलाई 2023 को हुई. पहली बार इन दुकानों की अंतिम बोली 1 करोड़ 48 लाख 42 हजार रुपए तक पहुंची थी, लेकिन किसी भी बोलीदाता ने राशि जमा नहीं की. नियमानुसार ऐसे खरीदारों को दोबारा नीलामी में शामिल नहीं किया जा सकता था, मगर खैरागढ़ नगर पालिका ने इन्हीं को फिर से मौका दिया. यही से भ्रष्टाचार के इस खेल की बुनियाद बनी. 14 अक्टूबर 2025 को दूसरी नीलामी की औपचारिकता पूरी की गई. इस बार वही पुराने बोलीदाता शामिल हुए और दुकानों को आधे से भी कम कीमत पर “कागजी प्रक्रिया” के ज़रिए बेच दिया गया.

धरमपुरा स्थित मणिकंचन केंद्र की दुकान क्रमांक 01 पहले अमलीडीह निवासी उमा धृतलहरे को 14 लाख 61 हजार रुपए में नीलाम हुई थी. भुगतान न करने के बावजूद वही दुकान दोबारा उन्हीं को 11 लाख रुपए में दे दी गई — यानी पालिका को 3 लाख 61 हजार रुपए का नुकसान.

दुकान क्रमांक 02 की पहली बोली 15 लाख रुपए की थी, जिसे चंद्रकांत बिदानी ने लिया था. उसने रकम नहीं जमा की, लेकिन अगली नीलामी में वही दुकान त्रिलोक कोठले को सिर्फ 3 लाख 80 हजार रुपए में बेच दी गई. यह सौदा पालिका के लिए 11 लाख 20 हजार रुपए का घाटा साबित हुआ.

दुकान क्रमांक 03 की पहली कीमत 12 लाख 81 हजार रुपए थी, जो नोहर ध्रुवे के नाम पर गई थी. बाद में यह दुकान राजू शाह को केवल 4 लाख 2 हजार रुपए में दे दी गई, जिससे 8 लाख 79 हजार रुपए का नुकसान हुआ.

इसी तरह दुकान क्रमांक 05 और 06 की पहली बोली नरेंद्र वर्मा ने क्रमशः 9.50 लाख और 10.50 लाख रुपए में ली थी, लेकिन भुगतान नहीं किया. दूसरी नीलामी में वही दुकाने उन्हें फिर से 3.90 लाख और 3.75 लाख रुपए में दे दी गईं. इन दो दुकानों में ही पालिका को 12 लाख 35 हजार रुपए का घाटा हुआ.

दुकान क्रमांक 14 पहले 12 लाख 10 हजार रुपए में नदीम मेमन को नीलाम हुई थी, जबकि पुनः नीलामी में वही दुकान छैल बिहारी तिवारी को 3 लाख 72 हजार रुपए में दे दी गई — यानी 8 लाख 38 हजार रुपए का नुकसान.

दुकान क्रमांक 18 की कीमत 12 लाख रुपए थी, जिसे आशीष सिंह ने मात्र 3 लाख 90 हजार रुपए में खरीद लिया. वहीं दुकान क्रमांक 19 पहले 11 लाख 40 हजार रुपए की थी, जो बाद में त्रिलोक कोठले को 3 लाख 35 हजार रुपए में दी गई.

फतेह मैदान स्थित दुकान क्रमांक 02 भी घोटाले का उदाहरण बनी. पहले कैलाश नागरे ने इसे 7 लाख रुपए में खरीदा था, जिसे बाद में राजेश ध्रुवे को केवल 2 लाख 91 हजार रुपए में बेच दिया गया.

गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी सौदों में सिर्फ एक दुकान क्रमांक 13 में मूल्य वृद्धि हुई. पहले अब्दुल इमरान खान के नाम यह दुकान थी, जिसे खुलेश्वर सिन्हा ने 25 लाख रुपए में खरीदा — यानी 1 लाख 60 हजार रुपए अधिक. बाकी सभी दुकानों में औसतन 50 फीसदी से अधिक का घाटा दर्ज हुआ.

जानकारी के मुताबिक पूरी प्रक्रिया “पूर्व नियोजित” थी. बोलीकर्ता, दरें और नाम पहले से तय थे. नीलामी केवल औपचारिकता बनकर रह गई. बताया जा रहा है कि कई दुकानों के खरीदार कुछ पार्षदों के रिश्तेदार या राजनीतिक समर्थक हैं. नगर पालिका के अफसरों ने भी इस खेल पर आंखें मूंद लीं, स्थानीय नागरिकों में आक्रोश है.

बंटरबांट के हो रहे नए-नए प्रयोग : विधायक प्रतिनिधि

पूरे मामले को लेकर विधायक प्रतिनिधि मनराखन देवांगन ने पालिका प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं. देवांगन ने बताया कि नगर पालिका खैरागढ़ में बंदरबांट के नित नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं. ऐसे ही ये दुकान नीलामी का मामला भी सामने आया है. जिसमें जिस व्यक्ति ने पहले बोली लगाई और पैसे जमा नहीं किए उसी व्यक्ति को दोबारा नीलामी में शामिल किया गया है, जो कि साफ तौर पर भ्रष्टाचार है. उन्होंने बताया कि वह इसकी शिकायत मुख्य सचिव को करेंगे, अगर इसकी निष्पक्ष जांच हो तो कई रसूखदार इस मामले में दोषी पाए जाएंगे.

लोगों का कहना है कि खैरागढ़ पालिका में भ्रष्टाचार अब प्रणाली बन चुका है. सड़क निर्माण से लेकर भवन निर्माण और नीलामी तक हर जगह “कमीशन संस्कृति” का बोलबाला है. इस पूरे मामले की जांच की मांग अब खुलकर उठने लगी है. अगर यह आर्थिक अनियमितता प्रमाणित होती है, तो यह मामला आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) की जांच के दायरे में आ सकता है. हालांकि, जनता का भरोसा टूटा हुआ है — उन्हें डर है कि कई अन्य घोटालों की तरह यह मामला भी किसी फाइल के नीचे दब जाएगा. खैरागढ़ की जनता अब सवाल कर रही है — क्या नगर पालिका जनता की सेवा के लिए बनी है, या कुछ रसूखदारों के रिश्तेदारों की संपत्ति बढ़ाने के लिए?