हेमंत शर्मा,इंदौर। आरटीओ विभाग में ऑनलाइन सिस्टम लागू होने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। अधिकारी भले ही यह कहें कि अब वाहन से जुड़ी सारी सेवाएं ऑनलाइन हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है। आज भी इंदौर आरटीओ पूरी तरह दलालों के कब्जे में है, बिना एजेंट के कोई भी काम आगे नहीं बढ़ता।

लल्लूराम डॉट कॉम की पड़ताल में खुली पोल

जब lalluram.com ने इस पूरे मामले की जमीनी पड़ताल की, तो सामने आया कि वाहन बेचने के बाद विक्रेता को आरटीओ नहीं आना पड़े, इसके लिए एजेंट खरीदार से 8 हजार रुपये तक की रकम वसूलते हैं। दलाल साफ कहते हैं — “यह पैसा अधिकारियों तक जाएगा, नहीं तो फाइल आगे नहीं बढ़ेगी।”

नियमों की धज्जियां, फाइलें रोककर वसूली का खेल

नियमों के मुताबिक आवेदन करने के तीन दिन के भीतर नाम ट्रांसफर की प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए, लेकिन हकीकत में फाइल तब तक अटकी रहती है जब तक कोई दलाल आकर बाबू से बात न कर ले। आरटीओ में बैठे कई अधिकारी बिना एजेंट के अपनी कलम तक नहीं चलाते। नाम नहीं छापने की शर्त पर एजेंट ने जानकारी दी जिसकी पूरी रिकॉर्डिंग lalluram.com के पास उपलब्ध है।

लल्लूराम की टेस्ट रिपोर्ट: एजेंट के बिना फेल सिस्टम

Lalluram.com ने खुद एक वाहन नामांतरण के लिए ऑनलाइन आवेदन किया, लेकिन सिस्टम में आवेदन आगे नहीं बढ़ा। जैसे ही एजेंट को हायर किया गया, कुछ ही घंटों में आरसी कार्ड अपलोड हो गया। इससे साफ है कि पूरा सिस्टम एजेंटों के इशारे पर ही चलता है।

अब सवाल परिवहन मंत्री से

जब सब कुछ ऑनलाइन है, तो फिर इंदौर आरटीओ में दलालों की जरूरत क्यों? आखिर वो भ्रष्ट अधिकारी जो बिना एजेंट के काम नहीं करते, उन पर कार्रवाई कब होगी? क्या परिवहन मंत्री इस जमे-जमाए भ्रष्टाचार के जाल पर अब सख्त कदम उठाएंगे?

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H