देहरादून. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने धामी सरकार पर तीन मुद्दों को लेकर करारा हमला बोला है और कई सवाल खड़े किए हैं. करन माहरा ने एक्स पर पोस्ट कर कहा, 25 साल का उत्तराखंड और क्या हासिल हुआ हमें? सिर्फ आंदोलन, भूख हड़ताल और वादों के धोखे? 25 साल पहले हम सड़कों पर उतरे थे, इस सपने के साथ कि अपना राज्य होगा, अपनी सरकार होगी, अपने हालात हम खुद बदलेंगे. सोचा था, पहाड़ का बेटा अब दिल्ली की दहलीज पर नौकरी-रोजगार नहीं मांगेगा, बल्कि अपने घर में सम्मान से जिएगा, लेकिन आज जब उत्तराखंड 25 साल का हो रहा है तो एक सवाल पूरे पहाड़ में गूंज रहा है… “क्या बदला?” कागजों में विकास हुआ होगा, भाषणों में क्रांति आई होगी, लेकिन जमीन पर आज भी हालात वहीं खड़े हैं, जहां 1999 में थे. ये राज्य अभी भी जनता के सपनों पर नहीं, संघर्षों और आंदोलनों पर चल रहा है.

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पहली खबर: 9 किलोमीटर सड़क के लिए अनशन! स्वास्थ्य बिगड़ चुका है

हम 2025 में हैं. चंद्रमा पर पहुंच गए, चिप लगवा रहे हैं, लेकिन जनपद रुद्रप्रयाग के बघाणीताल से भुनाल गांव भेडारु तक सिर्फ 9 किलोमीटर सड़क बनाने के लिए लोग अनशन पर बैठे हैं. उनका स्वास्थ्य खराब हो चुका है, पर सरकार का ज़मीर अभी तक “आराम से सो रहा है”. सवाल करो कि क्या पहाड़ की सड़क अब भी “सुविधा” है या “दया का दान” है? अगर 9 किलोमीटर सड़क के लिए भी लोग भूखे मरते हुए लड़ें, तो ये सरकार नहीं, मजाक है.

दूसरी खबर: 22 हज़ार कर्मचारी 20 साल से नौकरी, पर स्थायी नहीं

एक राज्य जो “रोज़गार” और “न्याय” के नाम पर बना था, वहाँ 22 हज़ार उपनल कर्मचारी 15 से 20 साल से काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें पक्का करने के आदेश जारी करके भी लागू नहीं कर रही. क्यों? क्योंकि सरकार के लिए ये लोग इंसान नहीं, सिर्फ़ “काम चलाऊ मशीनें” हैं. पसीना हमारा, सिस्टम उनका. दावा “डबल इंजन” का, पर कर्मचारियों के पेट में अभी भी “डर का इंजन” जल रहा है. क्या यही न्याय था, जिसके लिए उत्तराखंड ने अपने बच्चे खोए थे?

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तीसरी खबर: चंबा में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धरना जारी है

स्वास्थ्य सुविधा कोई विलासिता नहीं, इंसान का अधिकार है, लेकिन चंबा में लोग धरने पर बैठे हैं, क्योंकि सरकार ने अस्पताल तो बना दिए, पर डॉक्टर नहीं दिए. मरीज हैं, बेड हैं, पर इलाज नहीं. कागज़ों में स्वास्थ्य व्यवस्था “उत्कृष्ट” है, ज़मीन पर मरीज़ खुद को स्ट्रेचर पर ले जाते हैं. सरकार कहती है कि सब ठीक है. हम पूछते हैं कि अगर सब ठीक है तो आंदोलन क्यों हो रहे हैं? 25 साल क्या सिर्फ़ तारीखें गिनने के लिए मिले थे? अगर नौकरी के लिए आंदोलन है, सड़क के लिए अनशन है, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धरना है, तो “राज्य” सिर्फ़ नक्शे पर बना है, जमीन पर नहीं. उत्तराखंड बना था “संघर्ष खत्म करने” के लिए…पर आज भी इस राज्य की सबसे मजबूत पहचान “आंदोलन” ही है. आज 25 साल बाद भी पहाड़ का दर्द, पहाड़ जैसा ही भारी है.