दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए चार साल की बच्ची की अंतरिम कस्टडी उसके भारतीय पिता को देने का निर्देश दिया है। यह फैसला उस आशंका के चलते लिया गया कि रूसी नागरिक मां बच्ची को भारत से ‘भगा कर’ रूस ले जा सकती है। अदालत ने कहा कि “बच्ची की सुरक्षा और उसकी स्थिर परवरिश सर्वोपरि है।” मामला इसलिए भी विशेष है क्योंकि बच्ची और उसकी मां दोनों रूसी पासपोर्ट धारक हैं, जबकि पिता भारतीय नागरिक है। यानी कानूनी रूप से बच्ची पर रूस का भी अधिकार क्षेत्र लागू हो सकता है। अदालत ने इस संवेदनशील पहलू को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक समान मामले का हवाला दिया और यह अंतरिम (temporary) कस्टडी का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का असर
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने हालिया घटनाओं का जिक्र करते हुए कड़ा रुख अपनाया। अदालत ने कहा कि इससे पहले विक्टोरिया बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में एक रूसी महिला ने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना की थी और बच्ची को लेकर भारत छोड़ दिया था। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इसे अधिकारियों की गंभीर लापरवाही बताया था और भारत में मौजूद रूसी दूतावास की भूमिका पर नाराजगी जताई थी। इसी संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस अनिल क्षत्रपाल और जस्टिस हरीश वी. शंकर की पीठ ने टिप्पणी की “ऐसे में रूसी मां को बिना प्रतिबंध वाली कस्टडी देना भारतीय अदालतों की साख को कमजोर करने जैसा होगा।”
रूसी एम्बेसी की कोशिशें नाकाम
अदालत ने यह भी बताया कि साल 2023 में रूसी दूतावास ने मां और बच्ची को एग्जिट परमिट दिलाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन उस समय भी अदालत ने सतर्क रुख अपनाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में थोड़ी सी भी लापरवाही न्यायिक आदेशों को अप्रभावी बना सकती है। पीठ ने टिप्पणी की “यदि मां बच्ची को लेकर देश से बाहर चली गईं, तो भारतीय अदालतों के आदेशों को लागू कराना लगभग असंभव हो जाएगा।”
बच्ची का भारत कनेक्शन
ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही बच्ची का जन्म रूस में हुआ हो, लेकिन जन्म के तुरंत बाद वह भारत लाई गई और यहीं पली-बढ़ी। अदालत ने स्पष्ट किया कि बच्ची भारत की भाषा, परिवेश और सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में ढल चुकी है। मां ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने ‘कानूनी सिद्धांतों’ को नजरअंदाज किया, लेकिन हाईकोर्ट ने उनके तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा “बच्ची को अचानक रूस ले जाना उसके सर्वोत्तम हित में नहीं होगा। यह उसे उसकी जड़ों और उसके स्थिर वातावरण से काट देगा।”
शादी से जंग तक की कहानी
दंपती ने वर्ष 2013 में विवाह किया था। विवाह के बाद दोनों कुछ साल रूस में रहे और फिर भारत आ गए। लेकिन यहां आकर रिश्तों में खटास बढ़ गई। मामला तलाक तक पहुंचा और इसके साथ ही बच्ची की कस्टडी को लेकर कानूनी जंग शुरू हो गई। मामला धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय कानून, विदेशी नागरिकों के अधिकार और बच्चे के सर्वोत्तम हित (Best Interest of Child) जैसे सिद्धांतों की प्रमुख मिसाल बन गया। क्योंकि यहां मां और बच्ची दोनों रूसी पासपोर्ट धारक हैं, जबकि पिता भारतीय नागरिक है, और बच्ची लंबे समय से भारत में ही रह रही है।
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