दिल्ली विधानसभा की प्रिविलेज कमेटी ने फांसी घर (गैलोज़) से जुड़े मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal), पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया(Manish sisidiya), पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राम निवास गोयल(Ram Niwas Goyal) और पूर्व डिप्टी स्पीकर राखी बिड़ला(Rakhi Birla) को नोटिस जारी किया है। कमेटी ने चारों को 13 नवंबर को अपने समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है। फांसी घर से जुड़े इस मामले में आरोप है कि दिल्ली विधानसभा परिसर में स्थित ऐतिहासिक संरचना में बदलाव और मरम्मत कार्य के दौरान निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इस मुद्दे को लेकर इसे विशेषाधिकार (Privilege) के उल्लंघन का मामला माना गया है।

क्या है मामला?

यह विवाद अगस्त 2022 में उस समय शुरू हुआ था, जब विधानसभा परिसर में स्थित एक संरचना का उद्घाटन किया गया। उसे “ब्रिटिश कालीन फांसी घर” के रूप में प्रचारित किया गया था। बताया गया था कि यह ऐतिहासिक ढांचा अंग्रेजों के शासनकाल का है, जिसे ‘संरक्षित कर पुनर्स्थापित’ किया गया है। कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, राम निवास गोयल, राखी बिड़ला मौजूद थे।  लेकिन बाद में कुछ सदस्यों ने दावा किया कि यह संरचना ऐतिहासिक नहीं थी या इसके ‘फांसी घर’ होने के दावे की कोई प्रमाणिकता नहीं थी। इसके साथ ही यह भी सवाल उठे कि क्या इस संरचना के निर्माण/पुनर्निर्माण के लिए कानूनी और तकनीकी प्रक्रियाओं का पालन किया गया? क्या संबंधित विभागों, विशेषज्ञ संस्थानों या विरासत संरक्षण इकाइयों की मंजूरी ली गई? इन्हीं बिंदुओं को विशेषाधिकार हनन (Breach of Privilege) के दायरे में माना गया है और अब इसकी जांच प्रिविलेज कमेटी कर रही है।

लेकिन बाद में विधानसभा में सवाल उठे तो यह विवाद गहरा गया कि क्या वह संरचना वास्तव में ब्रिटिश शासनकाल का ‘फांसीघर’ थी या फिर किसी पुराने भवन का सामान्य हिस्सा, जैसे कि सर्विस स्टेयरकेस या भोजन पहुँचाने के लिए इस्तेमाल होने वाला मार्ग। वर्तमान सरकार का आरोप है कि पिछली सरकार ने इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया और टैक्सदाताओं के पैसे का उपयोग ‘विरासत संरक्षण’ के नाम पर राजनीतिक छवि बनाने के लिए किया गया।

लिखित में मांगा जवाब

प्रिविलेज कमेटी ने इन चारों पूर्व पदाधिकारियों से इस ‘फांसी घर’ के अस्तित्व और उसके उद्घाटन की पूरी प्रक्रिया में उनकी भूमिका को लेकर लिखित स्पष्टीकरण मांगा है। समिति ने निर्देश दिया है कि वे 13 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपना पक्ष रखें। साथ ही यह भी कहा गया है कि तय तिथि से पहले सभी को अपना लिखित जवाब जमा कराना होगा, ताकि मामले की आगे की कार्यवाही को तय किया जा सके।

इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि अगस्त 2022 से जुड़ी है, जब विधानसभा परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान एक स्मारक-नुमा मंच तैयार किया गया था। इसमें जेल की सलाखों जैसी सजावट, दिनांक के पटल, दीवारों पर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी झलकियाँ और फांसी के फंदों का प्रतिरूप लगाया गया था। कार्यक्रम के दौरान इसे ‘ब्रिटिश राज में स्वतंत्रता सेनानियों को प्रताड़ित करने और फांसी देने वाले कमरे’ के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इसी आधार पर इसे ‘फांसी घर’ नाम दिया गया और संबंधित संरचना को ऐतिहासिक महत्व का बताया गया।

‘फांसी घर के नहीं मिले सबूत’

उधर, विपक्षी दलों के विधायकों और कई इतिहासकारों ने कहा कि इस परिसर में कभी फांसीघर होने या यहां से लालकिला तक सुरंग जाने का कोई प्रमाणिक दस्तावेजी या पुरातात्विक सबूत उपलब्ध नहीं है। उद्घाटन के दौरान किए गए ऐतिहासिक दावों की सत्यता पर भी उन्होंने प्रश्न उठाए। विवाद बढ़ने पर यह मामला 7 अगस्त को प्रिविलेज कमेटी को सौंपा गया था। कमेटी अब यह जांच कर रही है कि क्या इस संरचना को ऐतिहासिक सत्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया, और क्या यह कदम विधानसभा की गरिमा और प्रक्रियाओं का उल्लंघन था। कमेटी की सुनवाई के बाद चारों नेताओं को अपना पक्ष रखना होगा।

‘प्रिविलेज कमेटी के सामने होना पड़ेगा पेश’

ऐसे में इस पूरे मामले ने राजनीतिक और कानूनी, दोनों मोर्चों पर हलचल बढ़ा दी है। प्रिविलेज कमेटी द्वारा जारी नोटिस का पालन न करना या जवाब में अस्पष्टता पाए जाने पर संबंधित नेताओं को विधायी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इसमें चेतावनी, फटकार से लेकर सदन की अवमानना तक की कार्यवाही का प्रावधान है। यानी मामले की गंभीरता केवल ऐतिहासिक दावे तक सीमित नहीं, बल्कि विधानसभा की गरिमा और जवाबदेही से भी जुड़ी है।

कुल मिलाकर, यह विवाद इतिहास की व्याख्या, सरकारी खर्च, प्रतिमान-निर्माण और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन की चुनौती को सामने लाता है। अब 13 नवंबर की सुनवाई इस प्रकरण में एक निर्णायक क्षण साबित हो सकती है, जब चारों नेताओं को प्रिविलेज कमेटी के सामने उपस्थित होकर अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। इस दिन के बाद ही तय होगा कि यह मामला आगे सियासी बहस में बदलेगा या संवैधानिक प्रक्रिया में कोई नया मोड़ आएगा।

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