रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारतीयों की भर्ती पर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। भारत की कड़ी आपत्तियों और विरोध के बावजूद रूसी सेना में भारतीय नागरिकों की भर्ती पूरी तरह नहीं रुक पाई है। रिपोर्टों के अनुसार, फिलहाल कम से कम 44 भारतीय रूस की सेना में कार्यरत हैं। विदेश मंत्रालय ने बताया कि उसने यह मुद्दा मॉस्को के समक्ष गंभीर रूप से उठाया है और रूसी सेना में किसी भी भारतीय की आगे की भर्ती पर तुरंत रोक लगाने के साथ-साथ पहले से तैनात भारतीयों की कार्यमुक्ति की मांग की है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि उनकी सुरक्षित और शीघ्र वापसी सरकार की प्राथमिकता है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को बताया कि पिछले कुछ महीनों के दौरान सरकार को कई भारतीय नागरिकों के रूसी सेना में शामिल होने की जानकारी मिली है। अपनी साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में उन्होंने कहा, “हमारी नवीनतम जानकारी के अनुसार, वर्तमान में 44 भारतीय नागरिक रूस की सेना में सेवारत हैं।”
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सितंबर 2024 में भारतीय अधिकारियों ने 27 भारतीयों के रूसी सेना में होने की पुष्टि की थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 44 तक पहुँच गई है। मंत्रालय ने दोहराया कि इस मुद्दे को उच्च-स्तर पर मॉस्को के समक्ष उठाया गया है और भारत ने रूस से इन सभी भारतीय नागरिकों को तत्काल कार्यमुक्त करने और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।
जायसवाल ने बताया कि भारत ने इस मुद्दे को औपचारिक रूप से रूसी अधिकारियों के साथ उठाया है और उनसे अनुरोध किया है कि भारतीयों को जल्द से जल्द कार्यमुक्त किया जाए और रूसी सेना में भारतीय नागरिकों की भर्ती की प्रथा को तुरंत रोका जाए। उन्होंने कहा, “हम रूसी पक्ष के लगातार संपर्क में हैं। हम उन भारतीय नागरिकों के परिवारों से भी बात कर रहे हैं और उन्हें हर अपडेट की जानकारी दे रहे हैं।”
ऐसी खबरें सामने आई हैं कि छात्र और व्यावसायिक वीजा पर रूस गए कुछ भारतीय नागरिकों को धोखे से सैन्य अनुबंधों में शामिल कर लिया गया और बाद में उन्हें यूक्रेन में युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर तैनात रूसी सैन्य इकाइयों के साथ काम करने के लिए मजबूर किया गया।
सूत्रों के अनुसार, कई भारतीयों को यह विश्वास दिलाया गया था कि उन्हें रसोइया, सहायक या लॉजिस्टिक स्टाफ के रूप में रखा जाएगा, लेकिन बाद में उन्हें हथियारों से जुड़े मोर्चों पर भेज दिया गया। भारत सरकार ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई है और रूस से बार-बार आग्रह किया है कि जिन भारतीयों को सहायक कर्मचारियों के रूप में रखा गया है, उन्हें तुरंत मुक्त किया जाए और ऐसी भर्ती की प्रक्रिया को पूरी तरह रोका जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले वर्ष मॉस्को दौरे के दौरान इस मुद्दे को रूसी शीर्ष नेतृत्व के समक्ष उठाया था। इसके बावजूद, भारतीय नागरिकों की भर्ती की घटनाएं जारी हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार लगातार रूस से आग्रह कर रही है कि भारतीयों को तुरंत कार्यमुक्त किया जाए।
जायसवाल ने भारतीय नागरिकों को चेतावनी देते हुए कहा कि रूसी सेना में सेवा करने के किसी भी प्रस्ताव से दूर रहें, क्योंकि यह उनके जीवन के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने कहा, “हमने यह कई बार कहा है। हमारे लगातार याद दिलाने के बावजूद लोग भर्ती हो रहे हैं। हम किसी को रोक तो नहीं सकते, लेकिन हम हमेशा जोर देते रहेंगे कि ऐसी नौकरियों के लिए आवेदन करने से पहले इन खतरों को समझना जरूरी है।” सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वह न केवल रूसी अधिकारियों के संपर्क में है, बल्कि उन भारतीयों के परिवारों के साथ भी लगातार संवाद कर रही है, ताकि उन्हें पूरी स्थिति और उठाए जा रहे कदमों की जानकारी मिलती रहे।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रूसी सेना में भर्ती किए गए भारतीयों की संख्या अब लगभग 170 पहुंच चुकी है। इनमें से 96 भारतीयों को अब तक कार्यमुक्त कर भारत वापस भेजा जा चुका है, जबकि 16 लोग लापता बताए जा रहे हैं। वहीं, यूक्रेन में संघर्ष के अग्रिम मोर्चे पर लड़ते हुए कम से कम 12 भारतीयों की मौत हो चुकी है।
इन घटनाओं ने भारत सरकार की चिंता और बढ़ा दी है। विदेश मंत्रालय ने दोहराया है कि रूस में सहायक कर्मी, रसोइये या तकनीकी सहायक के नाम पर भारतीयों को सेना में शामिल किए जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं, जो बाद में युद्ध क्षेत्र में भेज दिए जाते हैं। सरकार का कहना है कि इस तरह के प्रस्तावों के पीछे अक्सर फर्जी भर्ती एजेंसियां और अवैध दलाल सक्रिय होते हैं, जो युवाओं को बेहतर वेतन और नौकरी के नाम पर गुमराह करते हैं।
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