वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर. 31 साल पुराने अंधविश्वास से जुड़े हत्या के मामले में हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट का फैसला पलट दिया। अदालत ने साफ कहा कि केवल इसलिए आरोपी बरी नहीं किए जा सकते कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की गवाही पेश नहीं हुई, क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(2) के तहत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बिना डॉक्टर की गवाही के भी स्वीकार्य है, यदि अन्य सबूत मजबूत हों। हाईकोर्ट ने इसे ट्रायल कोर्ट की कानूनी भूल बताया और सभी आरोपियों को धारा 302/149 के तहत दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है।

दरअसल मामला 5 फरवरी 1994 का है, जब महासमुंद जिले के बनियाटोरा गांव में एक ग्रामीण युवक रतन को भूत-प्रेत का साया होने की बात कहकर गांव में झाड़-फूंक की गई थी। इसी दौरान आरोप लगा कि मृतक और उसकी बहू डायन है। अगले ही दिन गांव के कई लोग हथियार लेकर मृतक के घर पहुंच गए। मृतक की पत्नी, बेटे और बहू की पिटाई के बाद भीड़ ने मृतक को घसीटकर बाड़ी में ले जाकर बेरहमी से मार डाला। घटना में घायल मृतक का बेटा, पत्नी और पिता सभी ने कोर्ट में बयान दिया कि आरोपी 10 से ज्यादा थे, हथियारबंद थे और मृतक को जान से मारने की नीयत से आए थे।

जांच में बरामद हथियारों पर खून के निशान भी पाए गए, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने केवल इस आधार पर आरोपियों को हत्या के मामले से बरी कर दिया कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर का कोर्ट में गवाही नहीं आया। हाईकोर्ट ने कहा कि घायल गवाहों की गवाही मजबूत है, बरामद हथियारों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से घटना सिद्ध होती है और डॉक्टर का बयान न होना हत्या को नकारने का आधार नहीं। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की दलील को मनमाना बताते हुए कहा कि इससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित हुई। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बदलते हुए सभी आरोपियों को हत्या का दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही एक महीने के भीतर अदालत में सरेंडर करने का आदेश दिया है। नहीं करने पर पुलिस को गिरफ्तारी का निर्देश दिया है।

छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें