हेमंत शर्मा, इंदौर। Exclusive: लल्लूराम डॉट कॉम (Lalluram.com) की लगातार पड़ताल ने इंदौर आरटीओ की गंदगी को उजागर कर दिया है। यहां सिस्टम नहीं, भ्रष्टाचार चलता है। सरकारी फीस भले ही 1074 रुपए हो, लेकिन लाइसेंस बनवाने के लिए जनता से 3 से 5 हजार रुपए तक की वसूली की जा रही है। कहने को सब कुछ ऑनलाइन है, लेकिन हकीकत में हर फाइल तब तक आगे नहीं बढ़ती, जब तक एजेंट की जेब गरम न हो जाए।
क्लर्क बना आरटीओ का किंगपिन, अफसर बने कठपुतली हिस्सेदार
आरटीओ दफ्तर अब क्लर्कों का साम्राज्य बन चुका है। सूत्रों के मुताबिक, क्लर्क गौतम बाबू और उनका गिरोह ही इस भ्रष्ट सिस्टम की रीढ़ है। नकली लाइसेंस मामले में पकड़े जाने के बावजूद गौतम बाबू आज भी पर्दे के पीछे से सब कुछ कंट्रोल कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने कबड्डी क्लब के अपराधियों को लाइसेंस वसूली के काम पर लगा रखा है, जिनमें कई ऐसे चेहरे हैं जो पहले जेल की हवा खा चुके हैं।
काम ठेके पर, रिश्वत पहले जैसी सिर्फ चेहरे बदले हैं
लाइसेंस का काम भले ही ठेके पर दे दिया गया हो लेकिन यह ठेका भी जानकारी के मुताबिक आरटीओ के किसी व्यक्ति का ही है। साथ ही वसूली का ठेका आज भी क्लर्कों और एजेंटों के पास है। आरटीओ में बिना दलाल कोई फाइल हिलती नहीं, बिना पैसा कोई फाइल चलती नहीं। कर्मचारी समय पर आते नहीं, अफसरों को फर्क नहीं। सुबह 9:30 बजे खुलने वाला दफ्तर दोपहर 1 बजे तक सूना पड़ा रहता है। ये है इंदौर आरटीओ की हकीकत, जहां जनता लाइन में और अफसर रिश्वत में।
RTO प्रदीप गायब, ARTO अर्चना की तबीयत खराब, गौतम बाबू का नंबर बंद!
जब Lalluram.com ने आरटीओ प्रदीप शर्मा से बात करनी चाही, तो उन्होंने फोन तक उठाना जरूरी नहीं समझा। इसके साथ ही एआरटीओ अर्चना मिश्रा से बात करने का प्रयास किया गया तो यह जानकारी मिली कि उनकी तबीयत खबर लगने के बाद खराब चल रही है। जिस दिन से lalluram.com ने आरटीओ के अंदर की खबरों को प्रकाशित करना शुरू किया तब से मैडम की तबीयत कुछ खराब हो गई है। ऐसा आरटीओ के लोगों द्वारा बताया गया है, गौतम बाबू से संपर्क की कोशिश की गई, लेकिन उनके कई मोबाइल नंबरों में से एक बंद और दूसरा ‘रॉन्ग नंबर’ निकला। अब सवाल यह है कि आखिर एक क्लर्क को इतने नंबरों की जरूरत क्यों पड़ती है ? क्या इसलिए ताकि पकड़े जाने से बचा जा सके ?
गौतम बाबू का कहना है लाइसेंस का काम मेरे अंडर में नहीं है। मेरा कबड्डी का क्लब जरुर है। बहुत सारे लोग एजेंट का काम करते हैं, मैं नहीं जानता हूं। अंकित के पास पहले भी काम था और अभी भी अंकित के पास ही काम है, लेकिन जो आरटीओ के सूत्र है वो बताते हैं कि आज भी गौतम बाबू ही पूरा लाइसेंस का काम हेड कर रहे हैं और उन्हीं के अंडर में लड़के काम कर रहे हैं, जो एजेंटों से पैसा वसूल करते हैं।
भ्रष्टाचार का खेल जारी, कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित
इंदौर आरटीओ में भ्रष्टाचार कोई राज नहीं, बल्कि सिस्टम का हिस्सा बन चुका है। अफसर आंख मूंदे बैठे हैं, बाबू खुलकर लूट रहे हैं और जनता हर फाइल के साथ ठगी जा रही है। Lalluram.com के खुलासों ने आरटीओ में हड़कंप तो मचाया है, लेकिन टेबल के नीचे रिश्वत का खेल अब भी उतनी ही रफ्तार से चल रहा है।
अब सवाल सीधा मध्य प्रदेश सरकार से है कि क्या इंदौर आरटीओ के इस भ्रष्टाचार के अड्डे पर अब बुलडोज़र चलेगा ? या फिर अफसरों और बाबुओं के इस “भ्रष्टाचार के साम्राज्य” को सरकार का मौन संरक्षण मिलता रहेगा ?
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