सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने राजधानी दिल्ली के ग्रीन फेफड़े माने जाने वाले रिज क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि दिल्ली रिज प्रबंधन बोर्ड (Delhi Ridge Management Board – DRMB) को वैधानिक दर्जा (Statutory Status) दिया जाए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि डीआरएमबी को रिज और मॉर्फोलॉजिकल रिज से जुड़े सभी मामलों के लिए “सिंगल विंडो अथॉरिटी” के रूप में कार्य करना होगा, ताकि विकास परियोजनाओं और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अनुमतियों या विवादों का निपटारा एक ही मंच से हो सके। पीठ ने रिज और मॉर्फोलॉजिकल रिज क्षेत्रों से सभी अतिक्रमण हटाने का भी निर्देश दिया और यह सुनिश्चित करने को कहा कि इन हरित क्षेत्रों में कोई नई निर्माण गतिविधि न हो।

बिना रिज पारिस्थितिकी होगी प्रभावित

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि कानूनी संरक्षण और प्रभावी शासन के बिना रिज की पारिस्थितिकी गंभीर रूप से प्रभावित होगी। अदालत ने डीआरएमबी को रिज और मॉर्फोलॉजिकल रिज से जुड़े सभी मामलों के लिए ‘सिंगल विंडो अथॉरिटी’ के रूप में कार्य करने का निर्देश दिया, ताकि पर्यावरणीय और विकास से संबंधित मामलों में समन्वित निर्णय लिए जा सकें।

रिज और मॉर्फोलॉजिकल रिज क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाने को कहा

प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने अपने फैसले में तीन प्रमुख मुद्दों पर विचार किया वन अधिनियम के तहत दिल्ली रिज की अंतिम अधिसूचना जारी करना। दिल्ली रिज और मॉर्फोलॉजिकल रिज क्षेत्रों से अतिक्रमण को हटाना। मॉर्फोलॉजिकल रिज की वैज्ञानिक रूप से पहचान करना।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि रिज क्षेत्र दिल्ली की पर्यावरणीय स्थिरता, वायु प्रदूषण नियंत्रण, भूजल पुनर्भरण और तापमान संतुलन बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदालत ने निर्देश दिया कि रिज और मॉर्फोलॉजिकल रिज क्षेत्रों में किसी भी नई निर्माण गतिविधि को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए।

क्या है मोर्फोलॉजिकल रिज?

बता दें कि मॉर्फोलॉजिकल रिज वह क्षेत्र है जिसे आधिकारिक रूप से वन भूमि के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है, लेकिन इसकी पारिस्थितिक और भौगोलिक विशेषताएं रिज क्षेत्र के समान होती हैं। अदालत ने कहा कि रिज इलाके के उचित संरक्षण के बिना दिल्ली की संपूर्ण पारिस्थितिकी की अखंडता कायम नहीं रखी जा सकती।

शीर्ष अदालत ने कहा कि रिज क्षेत्र दिल्ली के फेफड़े के रूप में काम करता है। ऐसे में अदालत का मानना है कि दिल्ली रिज प्रबंधन बोर्ड (डीआरएमबी) को उचित पहचान मिलने के बाद दिल्ली रिज इलाके की सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम करने की जरूरत है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि रिज को आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित नहीं करना इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को पर्यावरणीय संरक्षण से वंचित करता है।

3 दशक बाद भी कुछ खास नहीं किया

सुप्रीम कोर्ट ने बीते तीन दशकों के दौरान बार-बार दिए गए न्यायिक निर्देशों के बावजूद रिज क्षेत्र की सुरक्षा में कमी के लिए दिल्ली सरकार की कड़ी आलोचना की। अदालत ने कहा कि मई 1996 में ही कहा गया था कि सरकार ने रिज के संरक्षण के लिए उचित कदम नहीं उठाए हैं, लेकिन लगभग तीन दशक बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

रिज क्षेत्र पर हो रहा अतिक्रमण

रिपोर्टों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट हुआ है कि रिज क्षेत्र पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहा है। अदालत ने इसे राष्ट्रीय राजधानी का एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक हिस्सा बताते हुए सभी अतिक्रमणों को हटाने के निर्देश दिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि फरवरी 2023 के आदेश के तहत शुरू की गई ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ की पहचान और सीमांकन प्रक्रिया को पूरा किया जाए और इसकी प्रगति की रिपोर्ट अदालत को सौंपी जाए।

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