अभय मिश्रा, मऊगंज। मध्य प्रदेश के मऊगंज में क्रेशर और भूमाफियाओं का आतंक है। आदिवासी और गोंड समाज की जमीन कब्जाने का मामला सामने आया है। जहां मुआवजा लेकर निजी बताकर सरकारी जमीन को बेच दिया गया। सबसे चौंकाने वाला मामला आराजी नंबर 8/15 का है। दरअसल, यह वही जमीन है जिसे भू-अर्जन अधिकारी ने सरकारी काम के लिए लिया था। इस पर धारा 6 का प्रकाशन, अवार्ड प्रस्ताव, और मुआवजा वितरण की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी थी।
मुआवजा लेकर दोबारा बेच दी जमीन
जमीन के मालिक को इसके एवज में 83 हजार 187 रुपए का मुआवजा साल 2014 में दिया गया था, जिसे उसने खुद लिया। लेकिन लगभग 9 साल बाद, 10 जनवरी 2022 को, इसी सरकारी जमीन को दोबारा बेच दिया गया। मामला सामने आने के बाद कलेक्टर ने इसके जांच के आदेश दिए थे। जिसके बाद एसडीएम की रिपोर्ट ने सबको चौंका दिया।



जांच रिपोर्ट ने चौंकाया
जब माफियाओं ने इस जमीन से जुड़ा आवेदन पेश किया गया, तब उसके क्रियान्वयन के लिए मऊगंज कलेक्टर ने राजस्व अधिकारी को जांच के निर्देश जारी किए। लेकिन एसडीएम राजेश मेहता की जांच रिपोर्ट ने सबको चौंका कर रख दिया है। रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया कि यह जमीन बैजनाथ कोल की है, जिसका उपयोग अदयपुर स्टोन क्रेशर दीपचंद्र सिंह कर रहा है। उन्होंने लिखा कि पहले यहां से कच्चा रास्ता गुजरता था, जिसे भूमि स्वामी ने बंद कर दिया।
SDM ने नहीं लिखी मुआवजा देने की बात
लेकिन एसडीएम ने यह नहीं लिखा कि जिस जमीन की जांच की जा रही है, वह सरकारी है और उस पर पहले ही सरकार मुआवजा दे चुकी है। जमीन स्वामी का अधिकार खत्म हो चुका है। यानी कि सरकारी जमीन को निजी बताकर पूरी जांच को गुमराह किया गया।



आदिवासी और गोंड समाज का रास्ता बंद
ग्रामीणों का कहना है कि माफियाओं ने पहले सरकारी धन से बने रास्ते को खोद दिया। फिर खुद ही आवेदन देकर कहा कि ‘हमारी निजी भूमि में रास्ता बना है।’ यह खेल प्रशासन के सामने हुआ। कलेक्टर ने दो बार जांच आदेश जारी किए, लेकिन हर बार सच्चाई को कागजों में दफन कर दिया गया।अब वही रास्ता, जो वर्षों से आमजन के उपयोग में था, पूरी तरह बंद कर दिया गया है।गरीब आदिवासी और गोंड समुदाय के लोग अपने ही गांव में कैद जैसे हालात में जी रहे हैं।
कलेक्टर की सख्ती के बाद भी विभाग में ढिलाई!
गौरतलब है कि कलेक्टर संजय जैन ने इसी क्षेत्र के एक क्रेशर पर 10 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। फिर भी अधीनस्थ अधिकारी गलत जांच रिपोर्ट बनाकर उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सवाल अब पूरे जिले में गूंज रहा है कि जब ऊपर का प्रशासन सख्त है, तो नीचे की परतों में यह नरमी और मिलीभगत क्यों?


प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल
सवाल यह उठता है कि जब मुआवजा वितरण हो चुका था, तो रजिस्ट्रार ने बिक्री कैसे स्वीकृत की? एसडीएम राजेश मेहता ने सरकारी भूमि को निजी घोषित करने से पहले दस्तावेज़ क्यों नहीं देखे? क्या कलेक्टर के आदेशों की खुली अवहेलना की गई?और अगर जांच के आदेशों के बावजूद ऐसी रिपोर्ट दी गई, तो क्या यह भू-माफिया के प्रभाव का परिणाम नहीं?
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