दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके की जांच में अब फरीदाबाद स्थित अल-फलाह मेडिकल कॉलेज का नाम सामने आया है। कभी अपनी आधुनिक सुविधाओं और मेडिकल एजुकेशन के लिए जाना जाने वाला यह संस्थान अब आतंकी मॉड्यूल से कथित जुड़ाव के शक के घेरे में है। बुधवार (12 नवंबर) को जम्मू-कश्मीर पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की संयुक्त टीम ने कॉलेज परिसर में छापा मारा। सूत्रों के अनुसार, जांच एजेंसियों को शक है कि लाल किला विस्फोट में शामिल कुछ संदिग्ध डॉक्टर इसी कॉलेज से जुड़े थे।
जांच में अब तक जिन चार डॉक्टरों के नाम सामने आए हैं, डॉ. उमर उन नबी, डॉ. मुजम्मिल, डॉ. शाहीन शाहिद, डॉ. निसार-उल-हसन प्राथमिक जांच में खुलासा हुआ है कि ये सभी डॉक्टर धमाके के मुख्य साजिशकर्ता डॉक्टर उमर मोहम्मद से किसी न किसी रूप में जुड़े थे। एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि क्या इन डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज के संसाधनों या नेटवर्क का इस्तेमाल धमाके की तैयारी में किया था।
धमाके के बाद से लापता है डॉ. निसार
सूत्रों के मुताबिक, धमाके से जुड़ा एक और बड़ा खुलासा हुआ है. डॉ. निसार-उल-हसन, जिसे 2022 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुरक्षा कारणों से नौकरी से बर्खास्त किया था, ने फर्जी पहचान के सहारे अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में दोबारा नौकरी हासिल की थी। जांच एजेंसियों के अनुसार, डॉ. निसार-उल-हसन धमाके के बाद से लापता है, और उसकी तलाश में कई टीमें जुटी हुई हैं। एजेंसियां यह भी जांच कर रही हैं कि उसने कॉलेज में नौकरी पाने के लिए कौन से दस्तावेज़ों का इस्तेमाल किया और क्या संस्थान के किसी कर्मचारी को इसकी जानकारी थी। इस बीच, अल-फलाह यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ. भूपिंदर कौर ने इस मामले पर आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि “विश्वविद्यालय का इन डॉक्टरों से कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है। जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग दिया जा रहा है। कैंपस में अब तक कोई संदिग्ध सामग्री या गतिविधि नहीं मिली है।”
भर्ती प्रक्रिया की होगी जांच
हालांकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दावा किया है कि संस्थान का इन डॉक्टरों से कोई व्यक्तिगत या आधिकारिक संबंध नहीं है, लेकिन जांच एजेंसियों को इस सफाई पर भरोसा नहीं है। एक वरिष्ठ जांच अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “एक ही कॉलेज से चार डॉक्टरों का आतंकी नेटवर्क से जुड़ना महज़ इत्तेफाक नहीं हो सकता। हमें संदेह है कि कहीं न कहीं भर्ती प्रक्रिया में सुरक्षा जांच की बड़ी चूक हुई है।”
सूत्रों के मुताबिक, एजेंसियां अब निजी विश्वविद्यालयों और मेडिकल संस्थानों की भर्ती प्रक्रिया की व्यापक जांच करने जा रही हैं। इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या फर्जी दस्तावेज़ों या कमजोर वेरिफिकेशन सिस्टम के चलते संदिग्ध लोग शिक्षा संस्थानों में घुसपैठ कर रहे हैं। इस बीच, अल-फलाह यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ. भूपिंदर कौर ने दोहराया है कि विश्वविद्यालय पूरी तरह जांच में सहयोग कर रहा है और अब तक कैंपस में कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं मिली है।
सूत्रों के अनुसार, अब तक कॉलेज के 70 से ज्यादा फैकल्टी मेंबर्स और छात्रों से पूछताछ की जा चुकी है। एजेंसियों ने कई शिक्षकों और नॉन-टीचिंग स्टाफ के मोबाइल फोनों की भी फोरेंसिक जांच शुरू कर दी है।
नेशनल मेडिकल कमीशन ने क्या कहा?
अब मेडिकल नियामक संस्था नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) तक पहुंच गया है। NMC ने गुरुवार को बयान जारी कर कहा है कि वह “इस पूरे मामले पर बारीकी से नजर रख रही है” और जांच एजेंसियों की रिपोर्ट आने के बाद जरूरी कार्रवाई की जाएगी। संस्थान की मान्यता, फैकल्टी की नियुक्ति प्रक्रिया और प्रशासनिक पारदर्शिता की भी समीक्षा की जाएगी। बता दें कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना वर्ष 2014 में ‘अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट’ द्वारा की गई थी। यह यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट और साइंस समेत कई कोर्स ऑफर करती है। इसका मेडिकल कॉलेज 2019 में नेशनल मेडिकल कमीशन से मान्यता प्राप्त कर चुका है।
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