पटना। राजधानी की बहुप्रतीक्षित पटना मेट्रो परियोजना को बिहार विद्युत विनियामक आयोग (BERC) से बड़ा झटका लगा है। आयोग ने मेट्रो प्रशासन की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें परिचालन अवधि के आधार पर सस्ती बिजली दरों की मांग की गई थी। आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा कि पटना मेट्रो को वही बिजली दरें चुकानी होंगी जो रेलवे पर लागू हैं, और इसमें किसी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी।

रेलवे टैरिफ के दायरे में रखा

आयोग ने अपने आदेश में कहा कि मेट्रो एक दिन में औसतन 16 घंटे परिचालन करेगी इसलिए उसे रेलवे टैरिफ के दायरे में रखा गया है। आयोग ने मेट्रो की दलील कि सेवा 24 घंटे नहीं चलेगी, इसलिए दरें कम होनी चाहिए को अमान्य बताते हुए कहा कि रिव्यू याचिका केवल तथ्यात्मक या टंकण त्रुटि के सुधार के लिए होती है, न कि पहले से तय दरों को बदलने के लिए।

8.16 रुपये प्रति यूनिट लागू

BERC ने स्पष्ट किया कि पटना मेट्रो पर 540 रुपये प्रति KVA फिक्स्ड चार्ज और 8.16 रुपये प्रति यूनिट बिजली शुल्क लागू रहेगा। आयोग ने यह भी कहा कि यह दरें मेट्रो की परिचालन क्षमता, लोड पैटर्न और आर्थिक व्यवहार्यता को ध्यान में रखकर तय की गई हैं। इसके साथ ही मेट्रो पर Time of Day (TOD) रेटिंग सिस्टम भी लागू किया गया है। इसके तहत मेट्रो को अपनी खपत के समय के हिसाब से अलग-अलग दरें चुकानी होंगी।

नॉन-पीक में 80% दरें लागू होंगी

आयोग के अनुसार सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक मेट्रो की कुल खपत का लगभग 45% हिस्सा आता है, इस अवधि में उसे सिर्फ 80% विद्युत शुल्क देना होगा। इसके बाद के तीन घंटे के लिए सामान्य दर (100%) लागू होगी। वहीं शाम के 7 पीक आवर में मेट्रो को 120% शुल्क देना होगा, जो सामान्य दर से 20% अधिक है।

परिचालन लागत पर असर

BERC ने अनुमान लगाया है कि शुरुआत में एलिवेटेड स्टेशनों पर प्रति स्टेशन 200 किलोवाट बिजली की खपत होगी, जो आगे चलकर 300 किलोवाट तक पहुंच सकती है। वहीं भूमिगत स्टेशनों की खपत 1500 से 2000 किलोवाट तक रहने का अनुमान है।

नए सिरे से तैयार करनी होगी

इस निर्णय के बाद पटना मेट्रो प्रशासन को अपनी परिचालन लागत और बजट की योजना नए सिरे से तैयार करनी होगी। आयोग ने कहा कि यह दरें टिकाऊ और पारदर्शी आर्थिक मॉडल सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई हैं ताकि सरकारी उपभोक्ता और परियोजना दोनों पर संतुलित असर पड़े। BERC का यह फैसला पटना मेट्रो के लिए आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण तो है, लेकिन आयोग के अनुसार यह दरें दीर्घकालिक रूप से राज्य की बिजली आपूर्ति व्यवस्था और मेट्रो की वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक हैं।