Anta By Election 2025 में जो नतीजा सामने आया, उसने राजस्थान की राजनीति को फिर हिला दिया. 2023 में यह सीट बीजेपी के पास थी और वह भी करीब 45 हजार वोट के बड़े अंतर से. लेकिन इस बार कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने मैच की पूरी दिशा बदल दी. शुरू से लेकर आखिरी राउंड तक मोरपाल सुमन और नरेश मीणा दोनों उनके सामने टिक ही नहीं पाए.

अब सवाल यह है कि भाया की वह कौन-सी ताकत थी जिसने चुनाव को एकतरफा बना दिया.

भाया की सॉफ्ट पावर आखिर है क्या?

यह कोई एक फैक्टर नहीं है. यह उनकी छवि, उनकी शैली और उनकी जमीन से जुड़ी राजनीति का मिश्रण है. लोग उन्हें सादा, सहज और उपलब्ध नेता के तौर पर पहचानते हैं. मंत्री रहने के बाद भी उन्होंने इलाके से दूरी नहीं बनाई. 2023 में हारने के बावजूद सड़कें बनवाना, छोटी-छोटी समस्याओं को खुद सुनना, गौशालाओं का निर्माण कराना और जरूरत पड़ने पर तुरंत मौजूद रहना… ऐसा काम लगातार लोगों को उनसे जोड़ता रहा.

चुनाव परिणाम आने से ठीक पहले भी वे अपने रोज़मर्रा के काम की तरह गौशाला पहुंचे और गायों को चारा खिलाते रहे. यह सब उनकी छवि को मजबूत करता है.

माइक्रो मैनेजमेंट जिसने खेल पलट दिया

इस बार भाया ने प्रचार को शोर-शराबे वाली रैलियों तक सीमित नहीं रखा. वे हर मोहल्ले, हर गांव और हर घर तक पहुंचे. बूथवार रणनीति कसी हुई थी, और उनकी टीम लगातार फीडबैक लेती रही.

बीजेपी की पूरी मशीनरी के बावजूद भाया का यह बारीक काम ज्यादा असरदार रहा.

कांग्रेस की एकजुटता ने रास्ता आसान किया

यह उपचुनाव कांग्रेस ने भी पूरी ताकत से लड़ा. डोटासरा, टीकाराम जूली और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने लगातार प्रचार किया. कई जगह संयुक्त सभाएं और रोड शो हुए, जिसने यह संदेश दिया कि पार्टी पूरी तरह एकसुर में काम कर रही है.

अशोक चांदना की भूमिका

चांदना को बारां-अंता चुनाव प्रभारी बनाने के बाद माहौल और भी बदला. वे लगातार क्षेत्र का दौरा करते रहे, बूथों की तैयारियां देखी, कार्यकर्ताओं को जोड़ा और लोगों से सीधा संवाद किया. इससे संगठन में नई ऊर्जा आई और भाया के पक्ष में हवा धीरे-धीरे तेज होती चली गई.

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