संजीव शर्मा, कोंडागांव। “जहां चाह वहां राह” — यह कहावत पूरी तरह साकार कर रहा है कोंडागांव विकासखंड का उच्च प्राथमिक शाला पीकड़भाटा (पंचायत लेमड़ी)। यहां किताबों के साथ खेतों में भी बच्चे जीवन का असली ज्ञान सीख रहे हैं। इस स्कूल में हर साल शिक्षक, पालक और छात्र मिलकर धान और सब्जियों की खेती करते हैं। इस वर्ष फसल बेहद अच्छी हुई है और इसका उत्साह स्कूल से लेकर गांव तक सबके चेहरों पर झलक रहा है।
स्कूल की भूमि पर पालक किसान हल चलाते हैं तो बच्चे अपने नन्हें हाथों से रोपा लगाते और पौधों को पानी देते हैं। जून से नवंबर तक धान की खेती होती है और फिर नवंबर से अप्रैल तक किचन गार्डन में साग-सब्जियां लगाई जाती हैं। इन सब्जियों का उपयोग स्कूल के मिड-डे मील में किया जाता है, जिससे बच्चों को ताजा और पौष्टिक भोजन मिलता है। इसके अलावा केले के पेड़ भी लगाए गए हैं, जिनके फल बच्चों को भोजन के साथ दिए जाते हैं।


खेती के लिए किया अनुपयोगी जमीन का इस्तेमाल : प्रधानपाठक
विद्यालय के प्रधानपाठक देवी सिंह मरकाम बताते हैं “स्कूल में जमीन तो पर्याप्त थी, लेकिन बारिश में पानी भरने से यह जगह अनुपयोगी हो गई थी। हमने सोचा क्यों न इसे खेती के लिए इस्तेमाल किया जाए। अब यही जमीन बच्चों की पढ़ाई और खुशियों का आधार बन गई है।”
बच्चों के लिए खर्च करते हैं खेती का पैसा : संकुल समन्वयक
संकुल समन्वयक गजाधर पांडे ने बताया, “यह देखकर बहुत खुशी होती है कि पालक भी पूरे मन से सहयोग कर रहे हैं। बच्चे यहां परंपरागत खेती के साथ-साथ आधुनिक तकनीक भी सीख रहे हैं। इस फसल से मिलने वाली आमदनी का उपयोग हम बच्चों के अध्ययन टूर, शिक्षण सामग्री खरीदने और जरूरतमंद छात्रों की सहायता के लिए करते हैं।”

पिछले साल बेचा गया 14 हजार का धान, स्कूल में खरीदा गया प्रिंटर
पिछले साल इस स्कूल ने लगभग 14,000 रुपए का धान बेचा था, जिससे एक प्रिंटर खरीदा गया। इस वर्ष भी फसल लहलहा रही है और पालक, शिक्षक व छात्र सभी के चेहरों पर प्रसन्नता झलक रही है। व्यापारी खुद स्कूल आकर फसल खरीदते हैं, जिससे बच्चों को मेहनत का सीधा फल मिलता है। यह प्रयोग न केवल स्वावलंबन की सीख दे रहा है, बल्कि बच्चों में कृषि के प्रति आत्मविश्वास और जिम्मेदारी भी बढ़ा रहा है। जहां खेत कक्षा बन गए हैं और फसलें किताबों के पन्ने, वहां से निकलने वाले ये छात्र सिर्फ शिक्षित नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर नागरिक बन रहे हैं।
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