पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना खुद सत्ता पक्ष ने भी नहीं की थी। एनडीए ने चुनाव से पहले जो नारा दिया था 2025, 225 फिर से नीतीश, वह लगभग सच होता दिखा। भले ही NDA 225 का आंकड़ा नहीं छू पाया, लेकिन 200+ सीटों की ऐतिहासिक जीत ने पूरे राजनीतिक समीकरण बदल दिए। दूसरी ओर महागठबंधन 35 सीटों पर सिमटकर रह गया और उसका प्रभाव लगभग खत्म हो गया।
इस बार भाजपा नंबर-1 रही
सबसे बड़ी बात यह कि नीतीश कुमार रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। यह बिहार की राजनीति में पहली बार है जब किसी नेता ने इतनी बार सत्ता संभाली हो। नतीजों का स्वरूप काफी हद तक 2010 जैसा रहा, बस फर्क इतना कि तब जदयू सबसे बड़ी पार्टी थी, और इस बार भाजपा नंबर-1 रही।
महागठबंधन का MY फॉर्मूला फेल
महागठबंधन के लिए यह चुनाव किसी झटके से कम नहीं रहा। राजद का प्रचारित MY समीकरण (मुस्लिम–यादव) इस बार पूरी तरह बिखर गया। खासकर सीमांचल के मुस्लिम वोटरों ने RJD के बजाय AIMIM पर भरोसा किया। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस 6 और AIMIM 5 सीटों पर सिमट गई। जन सुराज की हवा भी निकल गई और ज्यादातर सीटों पर उसकी जमानत जब्त हुई।
NDA की जीत के 5 प्रमुख कारण
- जीविका दीदी और महिलाओं का वोट
महिला वोटरों का एनडीए के पक्ष में बड़ा झुकाव रहा।
10 हजार की सहायता, बढ़ी पेंशन, 120 यूनिट मुफ्त बिजली और रोजगार योजनाओं ने माहौल बनाया।
- जंगलराज की यादें
तेजस्वी के सीएम फेस बनते ही एनडीए ने राजद शासनकाल की कानून-व्यवस्था का मुद्दा उछाला।
भय और सुरक्षा—दोनों कारकों ने NDA को बढ़त दी।
- SIR आंदोलन का असर
SIR के दौरान हुए जनमददाताओं के जागरूक आंदोलन का फायदा एनडीए को मिला।
रिकॉर्ड मतदान में उनका वोटरों का संगठन बड़ा फैक्टर बना।
- मजबूत प्रचार
PM मोदी की 20, सीएम नीतीश की 84 और अमित शाह की 38 सभाओं ने हवा बनाई।
उम्मीदवारों की घोषणा समय पर हुई, जिससे संगठन परफॉर्म कर सका।
- डबल इंजन का भरोसा
डबल इंजन सरकार के स्थिरता वाले संदेश ने जनता को आकर्षित किया। मेरा बूथ सबसे मजबूत अभियान बेहद सफल रहा।
महागठबंधन की हार के 5 कारण
- घोषणाओं का असर नहीं
महागठबंधन की नीतियां ‘सरकार बनने पर देंगे’ जितनी सीमित रहीं।
जबकि एनडीए ने कई फैसले तुरंत लागू कर दिए।
- सीटों पर अंदरूनी कलह
सीट शेयरिंग को लेकर विवाद रहा।
12 सीटों पर फ्रेंडली फाइट ने नुकसान किया।
- कांग्रेस में बगावत
टिकट बंटवारे पर खरीद–फरोख्त के आरोप, धरना–प्रदर्शन और गुटबाजी ने गठबंधन को नुकसान पहुंचाया।
- कमजोर प्रचार
तेजस्वी अकेले लड़ते दिखे।
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पार्टी हाईकमान के कार्यक्रम बेहद कम रहे।
- सवर्ण लामबंदी
मोकामा के दुलारचंद यादव हत्याकांड ने सवर्ण वोटरों को एकजुट किया।
अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने सुशासन का संदेश दिया।
बाहुबलियों की सीट पर एक नजर…
- मोकामा से अनंत सिंह चुनाव जीत गए
- मोकामा से ही बाहुबली सूरजभान की पत्नी वीणा देवी चुनाव लड़ रही थीं. वो हार गईं
- दानापुर सीट से जेल में बंद बाहुबली रीतलाल यादव चुनाव हार गए.
- कुचायकोट से जदयू के बाहुबली उम्मीदवार अमरेंद्र पांडेय चुनाव जीत गए
- मांझी सीट से बाहुबली उम्मीदवार रणधीर कुमार सिंह भी चुनाव जीत गए. रणधीर सिंह बाहुबली प्रभुनाथ सिंह के बेटे हैं.
- ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से हुलास पांडे की हार हुई है. ये सुनील पांडे के भाई हैं, हालांकि तरारी सीट से इनका भतीजा विशाल प्रशांत ने चुनाव जीत लिया है.
- नवादा से बाहुबली राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी ने राजद के टिकट पर चुनाव जीत लिया है
- रुपौली से बीमा भारती ने चुनाव हार गईं है. बीमा बाहुबली अवधेश मंडल की पत्नी हैं.
- नबीनगर से बाहुबली आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद खबर लिखे जाने तक पीछे चल रहे थे.
- जोकीहाट से शहनवाज आलम और सरफराज आलम चुनाव दोनों हारे. ये दोनों भाई हैं, और भाईयों में यहां टक्कर थी. दोनो ही बाहुबली नेता रहे तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं.
- वारिसलीगंज से बाहुबली अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी चुनाव जीत चुकी हैं
- लालगंज से बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला चुनाव हार गई हैं
- रघुनाथपुर से बाहुबली शाहबुद्दीन के बेटे ओासामा शहाब ने जीत दर्ज की है.
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