राजकुमार पाण्डेय की कलम से

गजब कर रहे माननीय के पुत्र..

इन दिनों एक मामला बड़े सुर्खियों में हैं. पहला ये कि नेता जी ने बेटा जी को फटकार लगाई. दूसरा बेटा जी ने नेता जी की लुटिया डुबाई. एक और एक नेता विपक्ष का युवा नेतृत्व कर रहा है दूसरा लड़ाई, दंगे के बाद अब अनैतिक कार्य भले ही क्षेत्र भोपाल हो और पिता जी मंत्री. मंत्री भले ही पूर्व ही सही लेकिन कद तो संगठन में पार्टी परिवर्तन के बाद भी ठीकठाक ही है. अब हुआ यूं कि बेटा जी ने सुरा पान कर गदर किया. एक बड़े मीडिया संस्थान की पार्टी में स्थित पब का मामला है. भाई के चेलों ने जमकर गदर काटा. उसी जगह जहां बीते दिनों एक वर्दीधारी रेलवे सुरक्षा कर्मी की वर्दी फाड़ी गई थी. अब होता भी क्या भाई ने जैसे ही अपने रसूखदार पिता का नाम लिया मामला ठंडे बस्ते में, वैसे शिकायत तो हो चुकी है लेकिन अब कौन आदरणीय की स्थिति में पाना पेचकस वाला फार्मूला अपनाए. भाई साहब ये आपका मालवा नहीं भोपाल है. मामला एक सेकेंड में आग में हवा हो जाता है.

मुझे पैसा नहीं टेंडर चाहिए

गजब का मध्यप्रदेश है भाई. यहां तो एक माननीय के बेहद करीबी अफसर खुद ही विभाग में टेंडर के लिए अड़ गए. मामला PWD का है यहां अक्सर शिष्टाचार के लिए आपसी WWF दिखाई दे जाती है. ऐसी मामला बीते दिनों आया, जब अपने परिजनों को सिविल वर्क के लिए अधिकारी अपना अधिकार जताने लगे. टेंडर भी 06.78 करोड़ का, जब खबर वहां पहुंची तो वहां भी माहौल में सन्नाटा. कारण करीबी होने का है. अब अधिकारी ही अधिकारी से परेशान, गजब का लोक निर्माण हो रहा है भाई.

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कोर्ट बताएगा मैं किस पार्टी की विधायक हूं

दलबदल के नियमों में कोई जनप्रतिनिधि किस हद तक उलझ सकता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण मध्य प्रदेश में सामने आया है. एक विधायकजी इस कदर उलझ गई हैं कि वो खुलकर यह तक नहीं कह पा रही हैं कि वो किस पार्टी से विधायक हैं. कांग्रेस से विधायक बनकर बीजेपी में शामिल हुईं ये विधायक एक बार फिर भोपाल पहुंची और जब मोबाइल की रोशनी के बीच उनसे पूछा गया कि वो अब किस पार्टी में हैं, तो विधायक सिर्फ इतना कह सकीं तो उनका मामला कोर्ट में लंबित है. अब कोर्ट ही तय करेगा कि वो किस पार्टी से विधायक हैं.

सोशल कंटेटस की बाढ़ पहुंची दिल्ली

मध्य प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल में युवा इकाई से संबंधित एक विभाग में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति होना है. कभी सोशल मीडिया पर खुद की वाहवाही करवाने वाले दो युवाओं के लिए पुरानी पोस्ट संकट बन गई हैं. दौड़ में शामिल विपक्षी गुट के युवाओं ने इन्हें मुद्दा बनाते हुए कंटेटस की बहुत बड़ी जिल्द तैयार की और सीधे दिल्ली भेज दी. अब दम भरा जा रहा है कि ताजपोशी रोकने में जिल्द आड़े आ सकती है.

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युवा नियुक्ति में बाधा बने नेताओं के सहयोगियों की तलाश

मध्य प्रदेश में पिछले दिनों संगठन के चुनाव हुए तो पार्टी के ही विरोधियों ने सबसे अधिक वोट मिलने वाले युवा नेता की राह में रोड़े डाले. तैयारी इस तरह की हुई कि एक टीम दिल्ली पहुंची और दूसरी प्रदेश स्तर पर कांटे बोने में लगी रही. इससे युवा चेहरा तय करने में कुछ दिन की परेशानी तो हुई, लेकिन आखिरकर ताजपोशी में आरोप बाधा नहीं बन सके. अब पद मिलने के बाद युवा नेता की टीम एक-एक चेहरा चिन्हित करने में जुटी हुई है कि दिल्ली जाने से लेकर प्रदेश में माहौल बनाने में कौन-कौन सहयोगी थे.

बिहार का फैसला चिंता में भविष्य !

बिहार के परिणाम कांग्रेस के युवा नेतृत्व को चिंतित कर गए. परिणाम को लेकर कई नेता बंद कमरे में यह कहते नजर आए की बिहार में जो कांग्रेस की स्थिति बनी है वही हालात मध्य प्रदेश कांग्रेस के भी है. अभी विधानसभा चुनाव हो जाएं तो विधायकों का मौजूदा आंकड़ा आधा हो जाएगा. मौजूदा नेतृत्व से युवा नेता इसलिये भी नाराज दिखाई दिए कि बड़े नेताओं के बीच में तालमेल की भारी कमी है. इसके कारण वो खुद के राजनीतिक भविष्य को लेकर भी चिंतित है.

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बिहार में एमपी के अधिकारियों का पावरफुल मैनेजमेंट

बिहार में एनडीए को ऐतिहासिक जीत मिली है, नेताओं के साथ-साथ मध्य प्रदेश के अधिकारियों की भी ड्यूटी चुनाव करवाने के लिए बिहार में लगाई गई थी. चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश के अधिकारी ‘शाम की व्यवस्था’ को लेकर परेशान नजर आए जो अधिकारी दूसरे राज्य के बॉर्डर के पास तैनात थे उन्होंने तो अपनी व्यवस्था पड़ोस वाले राज्य से कर ली, मगर दूसरे अधिकारी परेशान होते दिखाई आए, लेकिन कहते है ना मरता क्या नहीं करता धीरे-धीरे कर दूसरे अधिकारियों ने भी अपनी व्यवस्था कर ही ली, लेकिन इसके लिए उन्हें तगड़ा मैनेजमेंट करना पड़ा. नोट : (हमने जिस शाम की व्यवस्था की बात लिखी है वो बिहार में प्रतिबंधित है)

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