समीर शेख, बड़वानी। प्रदेश की जीवनदायिनी मां नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी हैं, जिसकी हर वर्ष करोड़ों लोग परिक्रमा करते हैं। परिक्रमावासियों की सेवा में सर्व समाज की आस्था जगजाहिर हैं। विभिन्न समाजजन परिक्रमा में शामिल होते हैं। ऐसे ही मुस्लिम समाज के बुजुर्ग की मां नर्मदा के प्रति आस्था देखते ही बन रही है।

नमाज पढ़ते हुए जमात में भी जा चुके

दरअसल अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर परिक्रमा पर निकले हैं। हरदा जिले के हंडिया तहसील के ग्राम अफगांव कला के निवासी सुल्तान पिता दिलदार खान परिक्रमा करते हुए शनिवार को अंजड़ क्षेत्र में पहुंचे इस दौरान वे नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए परिक्रमा सेवा केन्द्र पर रूके, जहां चाय की व्यवस्था की जाती है वहां लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने। इसके बाद वे नगर की भावसार धर्मशाला में रूके। यहां से यात्रा के आगे पड़ाव पर जाएंगे। अपने जीवन के कई बसंत देख चुके सुल्तान खान ने कहा कि वे मुस्लिम हैं और नमाज पढ़ते हुए जमात में भी जा चुके हैं।

मनोकामनाएं है होती पूरी

वे मजदूरी मूलक काम कर परिवार का पोषण करते हैं। उनके सात बच्चे हैं। बच्चों की शादी नहीं होने से वे काफी परेशान थे। इसलिए उन्होंने मां नर्मदा से प्रण लिया था कि जब बच्चों की शादियां हो जाएंगी, तो मैया की परिक्रमा पर निकलूंगा। सात में से उनके छह बच्चों की शादियां हो चुकी हैं। इसलिए मां नर्मदा से लिए गए प्रण के मद्देनजर गत माह पूर्णिमा से उन्होंने परिक्रमा की शुरूआत की हैं। ठंड के मौसम के बावजूद परिक्रमा के प्रति उनका हौसला देखते ही बन रहा हैं। नियम से पूजा करें, मनोकामना पूरी होती है।

आरती-पूजन में हो रहे शामिल

सुल्तान खान ने बताया कि मां नर्मदा से जो भी मनोकामना मांगी जाती हैं, वे पूरी होती है। अगर सही ढंग से नियम से पाठ-पूजन किया जाए तो हर मनोकामना पूर्ण होती है। उनको आरती-पूजन तो नहीं आता, लेकिन वे मां नर्मदा के जयघोष के साथ परिक्रमा पर आगे बढ़ रहे हैं। रास्ते में आरती-पूजन में शामिल हो रहे हैं।

मैया मैं आज पूजा करने आया हूं

नर्मदा परिक्रमा पर निकले सुल्तान खान द्वारा मैया नर्मदा की आस्था प्रकट करते हुए गीत का गायन भी कर रहे हैं। मैं आज पूजा करने आया हूं। अगर मैं जल चढ़ाऊ मैया वो भी मछली का झूठा हैं मैया, अगर मैं फूल चढ़ाऊं मैया वो भी भंवरे का झूठा हैं। मैया मैं आज पूजा करने आया हूं..।

पेंशन के सहारे परिक्रमा

सुल्तान खान ने बताया कि बच्चों की शादियों के बाद उन्होंने बच्चों से नर्मदा मैया से लिए प्रण के बारे में कहा, लेकिन बच्चों ने आर्थिक सहयोग नहीं किया। मनोकामना पूरी होने पर उनके मन में परिक्रमा की धुन सवार थी। शासन से उनको 600 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती हैं। इस पेंशन के सहारे ही उन्होंने अकेले परिक्रमा की शुरूआत की। मैया के सहारे रास्तेभर भोजन-पानी की सेवा मिल रही हैं। सुल्तान खान ने कहा कि जीवन में दोबारा मौका मिला तो वे आगे भी परिक्रमा का सिलसिला जारी रखेंगे।

सुल्तान खान नर्मदा परिक्रमा

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