दिलशाद अहमद, सूरजपुर। छत्तीसगढ़ प्रांतीय मारवाड़ी युवा मंच और भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति, झारखंड के संयुक्त प्रयास से सूरजपुर में आयोजित नि:शुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण शिविर ने सैकड़ों दिव्यांगजनों के जीवन में नई रोशनी जगाई। मंच की सूरजपुर एवं संस्कृति शाखा के सहयोग से आयोजित इस दो दिवसीय शिविर में हाथ-पैर के कृत्रिम अंगों के साथ कैलिपर्स, बैसाखी, चलने की छड़ी और कान की मशीन जैसी महत्वपूर्ण सहायक सामग्रियों का नि:शुल्क वितरण किया गया।

14 नवंबर से प्रारंभ हुए शिविर में 100 से अधिक दिव्यांगजनों का पंजीयन किया गया, जिनमें से 63 को कृत्रिम पैर, 13 को कृत्रिम हाथ तथा 5 को कैलिपर्स लगाए गए। कई लाभार्थियों को वहीं पर जयपुर फुट तकनीक से माप लेकर तुरंत कृत्रिम अंग प्रदान किए गए। यह शिविर न केवल दिव्यांगों को चलने-फिरने और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सहारा बना, बल्कि उनके चेहरों पर लंबे समय बाद मुस्कान भी लौटाई।

शिविर के संयोजक विकास जैन और मंच अध्यक्ष सुमित मित्तल ने बताया कि शिविर का आयोजन स्थानीय अग्रोहा भवन में किया गया था, जहां सूरजपुर सहित कोरिया, सरगुजा, जशपुर और बलरामपुर जिले से बड़ी संख्या में दिव्यांगजन पहुंचे। मंच के सदस्यों ने सभी लाभार्थियों के हाथ-पैर का माप लेकर विशेषज्ञों के साथ मिलकर तत्काल कृत्रिम अंग तैयार कर वितरित किए।

कार्यक्रम को सफल बनाने में मंच के सुनील अग्रवाल, मुकेश गर्ग, अंकुर गर्ग, स्वयं गोयल, गौरिश जिंदल, संस्कार अग्रवाल, यश अग्रवाल, अंकित अग्रवाल, प्रणव अग्रवाल एवं संस्कृति शाखा की प्रज्ञा अग्रवाल और लहर मित्तल सहित अनेक सदस्य सक्रिय रूप से जुटे रहे। साथ ही, नगर के मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल एसआरपीआर के संचालक राहुल अग्रवाल और उनकी मेडिकल टीम का सहयोग शिविर में विशेष रूप से सराहा गया।

लाभार्थियों ने जताया आभार, खुशी से छलक उठीं आंखें

कई दिव्यांगजन आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण वर्षों से कृत्रिम अंग लगवाने में असमर्थ थे। शिविर की जानकारी मिलते ही वे आशा लेकर पहुंचे और वहीं पर अपने कृत्रिम हाथ-पैर बनते देखकर भावुक हो उठे। कृत्रिम अंग मिलने के बाद कई लोगों की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। लाभार्थियों और उनके परिजनों ने मारवाड़ी युवा मंच का धन्यवाद करते हुए इसे जीवन बदल देने वाला आयोजन बताया।

बैसाखी पर आए, बिना सहारे लौटे

शिविर के पहले दिन का नज़ारा बेहद भावुक कर देने वाला था। अधिकांश दिव्यांगजन बैसाखी के सहारे, या फिर परिजनों की मदद से पहुंचे थे। लेकिन कृत्रिम पैरों के लगने के बाद जब वे बिना किसी सहारे के चलने लगे, तो उनका आत्मविश्वास देखने लायक था। कई लाभार्थियों ने दो दिनों तक स्थल पर ही अभ्यास किया और बिना बैसाखी के सड़क पर चलकर भी देखा।

मानवीय मूल्यों पर आधारित यह शिविर न केवल सामाजिक सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण बना, बल्कि उन लोगों के लिए नया जीवन-आधार भी बना, जिन्होंने दुर्घटनाओं या जन्मजात कारणों से अपने अंग खो दिए थे। सूरजपुर में आयोजित यह सेवा कार्य लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H