Supreme court CJI BR Gavai: सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के वन शक्ति एक मामले में अपना फैसला वापस ले लिया है। फैसले में उन सभी निर्माणों को गिराने का आदेश दिया गया था, जिन मामलों में पर्यावरण मंजूरी कंस्ट्रक्शन के बाद ली गई थी। सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने (2:1) बहुमत के साथ यह फैसला सुनाया था। जस्टिस भुइयां (Justice Bhuyan) इस पर सहमत नहीं थे और उन्होंने बहुमत के फैसले पर कड़ी असहमति जताई थी। अब मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) की तीन जजों की बेंच अपने पुराने आदेश को वापस ले लिया है। इसपर जस्टिस भुइयां ने कड़ी आपत्ति जताई है।

सीजेआई गवई ने 84 पेज में फैसला लिखा, जबकि जस्टिस भुइयां ने 97 पेज में अपनी असहमति जताई। वहीं कोर्ट के इस फैसले से ओडिशा में एम्स समेत देशभर में कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर से ध्वस्तीकरण का खतरा टल गया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई गवई और जस्टिस विनोद के चंद्रन की ओर से बहुमत (2:1) से लिए गए फैसले में कहा गया है कि अगर 16 मई के आदेश को वापस नहीं लिया गया, तो इसके परिणामस्वरूप लगभग 20,000 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन से निर्मित विभिन्न इमारतों, परियोजनाओं को ध्वस्त कर दिया जाएगा। 16 मई का फैसला जस्टिस अभय एस. ओका ओर जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने दिया था। फैसले में राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं पर संभावित विनाशकारी प्रभाव का हवाला दिया गया है, जिसमें ओडिशा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) का 962 बिस्तरों वाला अस्पताल और एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा शामिल है। सुनवाई के दौरान केंद्र ने उन परियोजनाओं की सूची सौंपी, जो रुकी हुई हैं और जिनका अस्तित्व खतरे में है।

जस्टिस उज्जल भुइयां ने सीजेआई के रिकॉल जजमेंट को पर्यावरण न्यायशास्त्र के मूल सिद्धातों को नजरअंदाज करने वाला और रिट्रोगेशन की दिशा में कदम करार दिया है। जस्टिस भुइयां और जस्टिस ओका की बेंच ने 16 मई के आदेश में पोस्ट-फेक्टो पर्यावरण क्लीयरेंस (बाद में दी गई मंजूरी) को अवैध ठहराते हुए ऐसे निर्माणों को ढहाने का आदेश दिया था। साथ ही सरकार को ऐसी मंजूरी देने से रोक दिया गया था।

16 मई के आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल हुई, जिस पर सीजेआई गवई की बेंच ने 16 मई का आदेश वापस ले लिया। जस्टिस भुइयां ने 97 पेज का डिसेंटिंग जजमेंट लिखा है, जिसमें उन्होंने सीजेआई गवई के फैसले पर कड़ी असहमति जताई है। उन्होंने लिखा, ‘प्रिकॉश्नरी प्रिंसिपल पर्यावरण न्यायशास्त्र का आधारस्तंभ है. पॉल्यूटर पे केवल क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है. प्रिकॉश्नरी प्रिंसिपल पॉल्यूटर पे के जरिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। रिव्यू जजमेंट पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पीछे ले जाने वाला कदम है। जस्टिस भुइयां ने बहुमत के फैसले को एन इनोसेंट एक्सप्रेशन ऑफ ओपिनियन कहा जो पर्यावरण न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों को अनदेखा करता है।

बेंच के तीसरे जज जस्टिस के विनोद चंद्रन ने भी अलग से अपना फैसला लिखा और कहा कि डिसेंट लोकतांत्रिक न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन इसे अपने निजी सही-गलत के अटल विश्वास से ऊपर उठकर करना चाहिए। उन्होंने 16 मई के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि उसमें एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मिली शक्तियों और कानूनी सिद्धांतों को नजरअंदाज किया गया था।

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